जगदलपुर, 23 मई । छत्तीसगढ़ के पूर्व पुलिस महानिदेशक और बस्तर में अपनी सेवाएं दे चुके आरके विज का कहना है कि लगातार बड़े कैडर के नक्सलियाें के मारे जाने के साथ ही शीर्ष नक्सली लीडर नम्बाला केशव राव उर्फ बसव राजू के मारे जाने से नक्सली संगठन का मनोबल टूटा है। उन्हाेंने कहा कि अबूझमाड़ से लेकर कर्रेगुट्टा तक नक्सलियों के गढ़ में अब सुरक्षा बल हावी हैं। इसके बाद अब बचे हुए नक्सलियों के सामने मुठभेड़ में मारे जाने या आत्मसमर्पण का ही विकल्प बच गया है।

पूर्व पुलिस महानिदेशक विज का कहना है कि छत्तीसगढ़ के सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जिले के सीमा पर अबूझमाड़ के गोटेर मुठभेड़ में 10 करोड़ (अन्य राज्यों की इनामी राशि भी शामिल) के इनामी नक्सली संगठन के महासचिव और शीर्ष नक्सली लीडर नम्बाला केशव राव उर्फ बसव राजू नक्सली संगठन में वैचारिक और केंद्रीय सैन्य प्रमुख था। इसके मारे जाने के बाद अब बचे हुए नक्सलियों के सामने मुठभेड़ में मारे जाने या आत्मसमर्पण का ही विकल्प रह गया है। सुरक्षाबल की ओर से जारी आक्रामक अभियान के बाद नक्सली भले ही आत्मसमर्पण नहीं कर रहे, लेकिन पिछले डेढ़ वर्ष से छत्तीसगढ़ में चल रहे नक्सल विराेधी अभियान के बाद वे यह समझ चुके हैं कि यह लड़ाई वे कभी जीत नहीं सकते हैं।

वहीं दूसरी ओर खुफिया सूत्राें के अनुसार नम्बाला केशव राव उर्फ बसव राजू के मारे जाने के बाद अब नक्सली संगठन के महासचिव पद के लिए थिप्परी तिरुपति उर्फ देवूजी एवं मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ सोनू उर्फ भूपति का नाम सामने आ रहा है। इसमें से तिरुपति उर्फ देवूजी नक्सली संगठन के केंद्रीय सशस्त्र सैन्य शाखा (सीएमसी) का प्रमुख है, जबकि वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति को पार्टी का वैचारिक प्रमुख माना जा रहा है, जो कि सेंट्रल रीजनल ब्यूरो (सीआरबी) का प्रमुख है। 62 वर्षीय तिरुपति उर्फ देवूजी तेलंगाना के मडिगा (दलित) समुदाय से आता है, जबकि 70 वर्षीय वेणुगोपाल राव ब्राह्मण हैं और तेलंगाना राज्य के पेड्डापल्ली क्षेत्र का है।

उल्‍लेखनीय है कि नक्सली संगठन के दो पूर्व महासचिव किशन को 2011 में मुठभेड़ में मार गिराया गया था और अब बसव राजू को भी दो दिन पहले बुधवार को मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया है। बसव राजू से पहले महासचिव रहे गणपति ने 2018 में स्वास्थ्य कारणों से अपना पद छोड़ दिया था और अब वह नेतृत्व करने की स्थिति में नहीं है।

गाैरतलब है कि नक्सली संगठन को स्थापित करने वाले पहली पीढ़ी के अधिकतर नक्सली अब मारे जा चुके हैं या बूढ़े होने के बाद संगठन का नेतृत्व करने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में पहली बार यह संकेत भी मिल रहे हैं कि नक्सली संगठन के संचालन की जिम्मेदारी अब दूसरी पीढ़ी के बडे़ कैडर के नक्सली संभाल सकते हैं।