सांप खेला से होती है पूजा संपन्न
गिरिडीह, 6 सितंबर। गिरिडीह जिले में इन दिनों माँ मनसा पूजा की धूम है। जगह-जगह प्रतिमाएँ स्थापित कर श्रद्धालु माता की आराधना कर रहे हैं। लेकिन शीतलपुर में होने वाली पूजा अपनी अनोखी परंपरा के कारण अलग पहचान रखती है।
यह पूजा पिछले 25 वर्षों से निरंतर हो रही है। इसकी शुरुआत गांव के ही स्वर्गीय रामधारी राम ने की थी। उन्होंने माँ मनसा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की परंपरा शुरू की थी, जो आज भी उसी श्रद्धा और भक्ति भाव से जारी है।
गांव के भक्त पिक्कू राम, मंत्री नंदू राम, मंत्री संजय राम और चंदन समेत कई लोग इस पूजा में विशेष भूमिका निभाते हैं। हर साल वे मिलकर पूजा की तैयारियाँ करते हैं और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
सांप खेला है खास आकर्षण
पारंपरिक विधि-विधान के साथ-साथ इस पूजा में सांप खेला का आयोजन भी किया जाता है। यह खेल शीतलपुर की माँ मनसा पूजा की विशेष पहचान बन चुका है और इसी के साथ पूजा संपन्न होती है।
सांप खेला के दौरान जीवित साँपों को सुरक्षित तरीके से पूजा स्थल पर लाया जाता है। फिर ग्रामीण और श्रद्धालु उन्हें पकड़कर विशेष पारंपरिक नृत्य और खेल-तमाशे का आयोजन करते हैं। ढोल-मंजीरे की थाप पर जब सांप को उठाकर खेला जाता है तो श्रद्धालु “माँ मनसा मैया की जय” के नारे लगाते हैं।
धार्मिक महत्व
ग्रामीण मानते हैं कि सांप धरती की उर्वरता और जीवन के चक्र का प्रतीक है। माँ मनसा, जिन्हें नागों की देवी भी कहा जाता है, उनकी पूजा में सांप खेला का आयोजन आस्था और सुरक्षा दोनों का प्रतीक माना जाता है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनी हुई है।
पूरे इलाके में इस अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। महिलाएँ और पुरुष मिलकर भक्ति गीत गाते हैं और माँ मनसा के दरबार में मन्नतें मांगते हैं।
सुख-शांति और समृद्धि की कामना
ग्रामीणों का मानना है कि माँ मनसा की कृपा से गांव में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। यही कारण है कि हर वर्ष श्रद्धालु पूरे विश्वास के साथ इस आयोजन में शामिल होते हैं।
