
केंद्रीय सरना समिति के नेतृत्व में राजभवन मार्च
हेमंत सरकार में आदिवासियों की स्थिति हुई बदतर : बबलू
रांची, 14 जुलाई । केंद्रीय सरना समिति के नेतृत्व में सोमवार को आईटीआई बजरा से राजभवन मार्च किया गया और पेसा कानून अधिनियम को अविलंब लागू करने को लेकर राज्यपाल को मांग पत्र सौंपा गया। इस अवसर पर केन्द्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा ने कहा कि हेमंत सरकार में आदिवासियों की स्थिति बदतर हुई है।
बबलू मुंडा की अगुवाई में विभिन्न आदिवासी, धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने आईटीआई बजरा पहुंच कर गुमला से पदयात्रा कर रांची पहुंचने वाले सभी आदिवासी नेताओं का स्वागत किया। इसके बाद केंद्रीय सरना समिति के नेतृत्व में आईटीआई बजरा से राजभवन मार्च किया गया और पेसा कानून अधिनियम को अविलंब लागू करने को लेकर राज्यपाल को मांग पत्र सौंपा गया।
इस मौके पर केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा ने कहा कि पेसा कानून अधिनियम से राज्य के विभिन्न जिलों के पाहन, पईनभोरा, कोटवार, महतो, मानकी मुण्डा, बैगा आदि जैसे लोगों को मिलने वाले अधिकार संरक्षित होंगे। उन्होंने कहा कि पेसा कानून अधिनियम पेसा कानून पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार अधिनियम-1996 भारत में अनुसूचित क्षेत्रों पांचवीं अनुसूची में रहने वाले आदिवासी समुदायों को स्वशासन और उनके प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार देने के लिए बनाया गया है। इस कानून का उद्देश्य ग्राम सभाओं को सशक्त बनाना आदिवासियों के पारंपरिक अधिकारों की रक्षा करना और जल जंगल जमीन जैसे संसाधनों पर उनके नियंत्रण को सुनिश्चित करना है।
विशेष समुदाय को लाभ पहुंचाने में लगी है सरकार-
बबलू ने कहा कि हेमंत सोरेन सरकार आदिवासियों की परंपरागत व्यस्था को नष्ट करने में लगी है। सरकार एक विशेष समुदाय को लाभ पहुंचाने के लिए, आदिवासियों की धर्म संस्कृति रीति रिवाज रुढ़िवादी प्रथा को खत्म करना चाहती है। इसलिए हेमंत सोरेन सरकार झारखंड में पेसा कानून अधिनियम 1996 लागू नहीं कर रही है।
मुख्य पहान जगलाल पाहन ने कहा कि पेसा अधिनियम 1996 में 23 प्रावधान और अधिनियम में कुल 17 धाराएं हैं इसके अंतर्गत विभिन्न प्रावधान ग्राम सभाओं और पंचायतों को शक्तियां प्रदान करते हैं। इन शक्तियों में
ग्राम सभाओं को जल, जंगल, जमीन पर पूर्ण नियंत्रण, लघु खनिजों के प्रबंधन और उपयोग का अधिकार, भूमि अधिग्रहण में ग्राम सभा की सहमति, स्थानीय विवादों को सुलझाने की शक्ति, सामुदायिक संसाधनों (जैसे तालाब, वन) का प्रबंधन, विकास योजनाओं की मंजूरी और निगरानी, पारंपरिक प्रथाओं और संस्कृति की रक्षा, शराब की बिक्री और खपत पर नियंत्रण और स्थानीय संस्थाओं (स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र) पर निगरानी सहित अन्यि अधिकार शामिल हैं।मौके पर अशोक मुंडा ने भी विचार व्यक्त किए।
मौके पर महादेव टोप्पो, बिरसा पहान, निशा भगत, एंजेल लकड़ा, खुशबू, अमित मुंडा, मुकेश मुंडा, मुन्ना हेमरोम, अरूण पहान, विशाल मंडा, संतोष मुंडा, महादेव मुंडा, राकेश मुंडा, धन सिंह मुंडा सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।