गोंडा, 18 जनवरी। आज से करीब 33 वर्ष पूर्व विश्व हिंदू परिषद के आवाहन पर वर्ष 1990 में कार सेवा शुरू हुई। उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे। अयोध्या के सभी रास्तों पर भारी पुलिस फोर्स लगा दी गई थी। लेकिन राम जन्मभूमि की चिंगारी प्रत्येक राम भक्त के हृदय में उबाल ले रही थी। भगवा कपड़ा देखते ही पुलिस गिरफ्तार कर लेती थी। फिर भी कारसेवकों के जुनून के आगे सारी व्यवस्था फीकी पड़ रही थी। कारसेवकों की सेवा के लिए विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता समाज के अन्य लोग भी उनके सहयोग में जुटे रहते थे।

गोंडा जिले के नवाबगंज थाना के गांव खरगूपुर के रहने वाले स्वर्गीय अंबिका प्रसाद पांडे का कारसेवा में बड़ा योगदान रहा है। उनके नाती बागेस पांडे बताते हैं कि उनके बाबा विश्व हिंदू परिषद के सदस्य थे। वर्ष 1990 में जब कार सेवा शुरू हुई। कारसेवा को रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव की सरकार ने जगह-जगह पर फोर्स लगा दिया। विश्व हिंदू परिषद के ऐलान के बाद कारसेवक अयोध्या के लिए निकल पड़े। सरकार ने उस समय अयोध्या जाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। यहां तक की बस और ट्रेन भी बंद कर दी गई थी। इसके बावजूद राम भक्तों का उत्साह कम होने का नाम नहीं ले रहा था। हमारे बाबा कुछ राम भक्तों को नदी पार कर अयोध्या पुल तक रास्ता बताने के लिए जा रहे थे। उन्होंने देखा कि पुल पर खड़े कार सेवकों पर अचानक पुलिस ने लाठियां बरसाना शुरू कर दी। पुलिस की लाठी से तमाम कार सेवक गंभीर रूप से घायल हो कर वहीं गिर पड़े। विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल समेत कई पदाधिकारी पुलिस की लाठी से घायल हो गए। उसके बाद कारसेवकों का आक्रोश भड़क गया था। कुछ कार सेवक सुरक्षा के चक्रव्यूह को तोड़ते हुए अयोध्या में प्रवेश कर गए। राम मंदिर आंदोलन में अंबिका प्रसाद पांडे के सक्रियता को देखकर कुछ समुदाय विशेष के लोगों ने पुलिस को सूचना दे दिया। इसके बाद पुलिस ने बाबा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 15 दिनों तक वह अयोध्या जेल में रहे।

अंबिका प्रसाद पांडे चंदा इकट्ठा कर कारसेवकों को करते थे भोजन

उस जमाने में पैसे का बड़ा अभाव था। सैकड़ों की संख्या में उनके गांव में प्रतिदिन कारसेवकों का जत्था गांव की पगडंडियों से गुजरता था। अंबिका प्रसाद पांडे उनकी सेवा के लिए तत्पर रहते थे। सेवाभाव में पैसे की कोई दिक्कत ना पड़े, इसके लिए उन्होंने धर्म रक्षा निधि बनाई। धर्म रक्षा निधि के नाम पर चंदा लेते थे। इस तरह करीब 300 कार्यकर्ताओं की एक बड़ी टोली बनकर तैयार हो गई। इस टोली में बड़े-बुजुर्गों के अलावा युवा भी थे जो कार सेवकों को भोजन पानी देने के बाद टेढ़ी नदी पार करवा कर अयोध्या के पुल तक पहुंचाते थे। हम लोग उस समय छोटे थे। राम भक्तों को पैकेट में भोजन ले जाकर देने का काम हम लोगों का था।

पुलिस से बचकर कारसेवकों को भोजन का पैकेट पहुंचते थे

विश्व हिंदू परिषद के विभाग संयोजक शारदा कांत पांडे बताते हैं कि हम लोग छोटे थे। हमारे पूर्वज हम लोगों को कारसेवकों की सेवा में लगा देते थे। उस समय भगवा कपड़ा देखते ही पुलिस की गाड़ी पहुंच जाती थी। दिन में पुलिस से बचने के लिए कार सेवकों को आम के घने बाग में रहने की व्यवस्था की जाती थी। वहीं पर उन्हें पैकेट में पूड़ी-सब्जी सहित तरह-तरह के भोजन बनाकर दिया जाता था। अयोध्या से सटे नवाबगंज के गांव में पुलिस लगातार भ्रमणशील रहती थी। ऐसे में हम लोगों को भोजन ले जाते समय कहीं पुलिस की निगाह न पड़ जाए। उससे भी बचाना पड़ता था। भोजन कराने के लिए गांव के युवाओं की एक टोली थी। जब कारसेवक नवाबगंज क्षेत्र के खरगूपुर गांव से गुजरते थे, तब हम लोग उन्हें रोक कर भोजन-पानी और विश्राम करने के लिए व्यवस्था करते थे। राम मंदिर आंदोलन में तमाम राम भक्तों ने बलिदान दे दिया। उन्हीं के संघर्ष का परिणाम है कि आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम भव्य मंदिर में विराजमान होने जा रहे हैं।