कोलकाता, 31 अगस्त। आरजी कर अस्पताल की घटनाओं से उत्पन्न हालात को संभालने के लिए शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी के बीच एक लंबी बैठक हुई। पार्टी सूत्रों के अनुसार, जिन मुद्दों पर दोनों के बीच असहमति उत्पन्न हो गई थी, उन पर जल्द ही राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर निर्णय लिया जा सकता है। इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों की भी संभावना जताई जा रही है।

हाल के दिनों में तृणमूल कांग्रेस में राजनीतिक हलचल और आरजी कर अस्पताल में डॉक्टर की हत्या और बलात्कार की घटनाओं से नागरिक समाज में उभरे आक्रोश के बीच अभिषेक बनर्जी की ‘निष्क्रियता’ ने पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ाया था। उन्होंने पुलिस और प्रशासन के कुछ ‘गलत’ कदमों को लेकर शुरू से ही नाखुशी जाहिर की थी। इस दौरान, पार्टी के एक वर्ग ने उनकी भूमिका पर सवाल उठाने भी शुरू कर दिए थे, जिससे तृणमूल के भीतर कई तरह की चर्चाएं उभरने लगीं। पार्टी के एक वर्ग का मानना था कि संगठनात्मक प्रमुख के रूप में अभिषेक की यह भूमिका स्थिति को और प्रतिकूल बना रही है।

ऐसी स्थिति में, शुक्रवार शाम अचानक ममता और अभिषेक कालीघाट में बैठक करने बैठे। पार्टी के एक नेता के अनुसार, “इस चर्चा से पार्टी और प्रशासन, दोनों के लिए सकारात्मक संकेत उभरे हैं।” इस बैठक में अभिषेक ने तृणमूल प्रमुख के साथ समग्र राजनीतिक स्थिति पर अपने विचार स्पष्ट रूप से रखे। वहीं, ममता ने भी उन्हें तात्कालिक कार्यों के बारे में जानकारी दी।

गत 14 अगस्त को आरजी कर अस्पताल में हुई हिंसक घटनाओं के बाद अभिषेक ने पुलिस हस्तक्षेप और पक्षपात रहित गिरफ्तारियों की मांग की थी। इसके बाद डॉक्टर की हत्या और बलात्कार की घटनाओं को लेकर प्रशासन के विभिन्न कदमों पर भी उन्होंने नाराजगी जाहिर की थी। इस दौरान, पिछले कुछ मौकों की तरह, इस बार भी अभिषेक ने खुद को इन घटनाओं से दूर रखा। उनकी इस ‘निष्क्रियता’ को लेकर पार्टी नेतृत्व की ओर से कई बार उन्हें संदेश भी भेजे गए थे।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, आरजी कर अस्पताल की घटनाओं के बाद मुख्यमंत्री ने पार्टी के सलाहकार संस्था के प्रमुख प्रतीक जैन के साथ भी लंबी चर्चा की थी। इसके बाद ममता-अभिषेक की बैठक की नींव पड़ी। इस बैठक के बाद, तृणमूल नेता कुणाल घोष भी मुख्यमंत्री के पास पहुंचे, जिन्हें आरजी कर से जुड़े एक मामले में बुलाया गया था।

इस बैठक के बाद, यह देखना दिलचस्प होगा कि तृणमूल कांग्रेस अपने आंतरिक मतभेदों को कैसे सुलझाती है और आगामी राजनीतिक रणनीति में क्या बदलाव करती है।