नई दिल्ली, 8 नवंबर। जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक चरित्र पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए इसे महत्वपूर्ण और दूरगामी परिणाम वाला बताया है। मौलाना मदनी ने कहा कि इस निर्णय ने मौजूदा सरकार को भी आईना दिखाया है जो अल्पसंख्यक दर्जे की बहाली में रुकावट बनी हुई थी और उसने पिछली सरकार के रुख के खिलाफ अदालत में अल्पसंख्यक चरित्र को खत्म करने का रुख अपनाया था।

मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद ने हमेशा मुस्लिम अल्पसंख्यकों के शैक्षिक और संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। इसका एक उदाहरण हाल ही में धार्मिक मदरसों के विरुद्ध सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा जारी नकारात्मक अभियान को रोकने का प्रयास है। इसी तरह अजीज बाशा मामले में जब 1967 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था तो जमीअत उलमा-ए-हिंद ने फिदा-ए-मिल्लत मौलाना सैयद असद मदनी के नेतृत्व में 14 वर्षों तक इसके खिलाफ संसद के अंदर और बाहर लंबी लड़ाई लड़ी थी। इसी पृष्ठभूमि में जमीअत उलमा-ए-हिंद के तत्वावधान में 29 अगस्त 1981 को एक ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए ऑल इंडिया कन्वेंशन’ आयोजित किया गया। इसमें देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में जमीअत उलमा-ए-हिंद ने भारत सरकार से जोरदार ढंग से मांग की कि मुस्लिम विश्वविद्यालय के संशोधन विधेयक को संसद सत्र में पारित कर अल्पसंख्यक चरित्र को बहाल किया जाए।

मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद के इस लंबे संघर्ष के परिणामस्वरूप संसद ने 1981 में अधिनियम पारित किया। हालांकि, नौकरशाही की मानसिकता की वजह से इस अधिनियम में कुछ खामियां छोड़ दी गईं, जिससे हस्तक्षेप का रास्ता खुला रह गया और इसके नतीजे में 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बार फिर अल्पसंख्यक दर्जे को समाप्त कर दिया। वर्ष 2006 में जमीअत उलमा-ए-हिंद ने इस फैसले के संदर्भ में डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात की और हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की सलाह दी, जिस पर तत्कालीन सरकार ने कार्रवाई भी की और खुद भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष हलफनामे द्वारा पेश किया, लेकिन 2014 के बाद एनडीए सरकार ने पिछले रुख से हटते हुए अल्पसंख्यक दर्जा खत्म करने के पक्ष में कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया। सरकार के इस रवैये के खिलाफ गत दस वर्षों से जमीअत उलमा-ए-हिंद ने हर संभव संघर्ष किया है।

मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद का लंबे समय से मानना ​​है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जो भारत के मुसलमानों की एक अनमोल धरोहर है, सुरक्षित रहे और उन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए सफलतापूर्वक अपनी मंजिलें तय करती रहे, जिसके लिए इसकी स्थापना की गई थी। विशेष रूप से इस पृष्ठभूमि में कि आज मुसलमान शैक्षिक रूप से बेहद पिछड़ा है और विभिन्न रिपोर्टों ने इसकी पुष्टि की है, मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए स्थापित संस्थानों के चरित्र को बदलना वास्तव में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ शत्रुता और उन्हें और पिछड़ेपन की ओर धकेलने का प्रयास है।

मौलाना मदनी ने इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ने वाले संगठनों एएमयू और एएमयू ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन और अन्य हस्तक्षेपकर्ताओं के कानूनी संघर्षों की सराहना की। मौलाना मदनी ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों से विशेष रूप से अपील की कि वह शिक्षा पर ध्यान दें और उच्च शिक्षा प्राप्त कर देश और समाज के विकास में अपनी भूमिका निभाएं।

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने आज बहुमत से एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र पर 1967 के सैयद अजीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया जजमेंट को खारिज कर दिया। आज भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पूर्व के फैसले को पलटते हुए कहा कि किसी संस्थान का अल्पसंख्यक चरित्र केवल इस आधार पर समाप्त नहीं हो सकता है कि उस संस्थान की स्थापना संसद के एक अधिनियम द्वारा की गई है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की पीठ एएमयू के अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा तय करेगी।