नई दिल्ली, 1 अप्रैल । हिन्दी के प्रख्यात लेखक और उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के साहित्य के सर्वोत्तम विद्वान शोधकर्ता डॉ. कमल किशोर गोयनका का मंगलवार को निधन हो गया। उनके बेटे संजय ने बताया कि उन्होंने 87 वर्ष की उम्र में दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में सुबह लगभग 7:30 अंतिम सांस ली। उनके छोटे पुत्र राहुल विदेश में हैं। इसलिए उनका अंतिम संस्कार कल किया जाएगा।

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में 11 अक्टूबर 1938 को जन्मे कमल किशोर गोयनका को वर्ष 2014 के लिए 24वें व्यास सम्मान से अलंकृत किया गया था। यह पुरस्कार उन्हें उनकी पुस्तक ‘प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन’ के लिए दिया गया था। उन्हें व्यास सम्मान के साथ-साथ उदय राज स्मृति सम्मान भी प्राप्त था। उन्हें प्रेमचंद साहित्य का अप्रतिम मर्मज्ञ माना जाता है। उनका योगदान केवल प्रेमचंद तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने हिंदी साहित्य के गम्भीर शोध, आलोचना और प्रवासी हिंदी साहित्य के क्षेत्र में भी असाधारण कार्य किया।

डॉ. गोयनका चार दशक तक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के शिक्षक रहे और रीडर पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने पांच दशक से अधिक समय तक प्रेमचंद और अन्य लेखकों पर शोध किया। उनकी 62 पुस्तकों में से 36 प्रेमचंद पर केंद्रित हैं। वे ‘प्रेमचंद के बॉसवेल’ के रूप में विख्यात हुए। उनकी खोजी दृष्टि ने प्रेमचंद साहित्य की दशकों पुरानी धारणाओं को चुनौती दी और भारतीयता के व्यापक परिप्रेक्ष्य में प्रेमचंद की पुनर्व्याख्या की।

उन्होंने हिंदी साहित्य में ऐतिहासिक खोज का कार्य किया और लगभग एक हजार पृष्ठों के अज्ञात एवं दुर्लभ साहित्य, सैकड़ों मूल दस्तावेज, पत्र, पांडुलिपियां आदि को खोजकर प्रेमचंद के साहित्यिक स्वरूप को अधिक प्रामाणिकता प्रदान की।

उन्होंने प्रेमचंद को मार्क्सवादी विचारधारा के संकुचित दायरे से बाहर निकालकर उन्हें भारतीय आत्मा का साहित्यिक शिल्पी सिद्ध किया। यह हिंदी आलोचना के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन था। वे प्रेमचंद पर पीएचडी और डी-लिट करनेवाले पहले शोधार्थी थे। उनके शोध ग्रंथों ने प्रेमचंद के शिल्प और जीवन-दर्शन को नये दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। उन्होंने प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों का कालक्रम स्थापित किया और उनकी अज्ञात रचनाओं को खोजकर प्रकाशित किया। साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित ‘प्रेमचंद कहानी रचनावली’ (छह खंड) और ‘नया मानसरोवर’ (आठ खंड) उनके श्रमसाध्य शोध का प्रमाण हैं। उन्होंने ‘गोदान’ के दुर्लभ प्रथम संस्करण को पुनः प्रकाशित कराकर प्रेमचंद के मूल पाठ को सुरक्षित रखने का प्रयास किया। आलोचकों ने यहां तक कहा कि प्रेमचंद के पुत्र भी जो कार्य न कर सके, वह गोयनका ने कर दिखाया।

डॉ. गोयनका ने प्रेमचंद जन्मशताब्दी पर राष्ट्रीय समिति बनाई और देश-विदेश में कार्यक्रम आयोजित किए। 1980 में वे मॉरीशस गए, जहां उनकी ‘प्रेमचंद प्रदर्शनी’ का उद्घाटन वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम ने किया। उन्होंने दूरदर्शन के लिए प्रेमचंद पर वृत्तचित्र बनवाया और साहित्य अकादमी में ‘प्रेमचंद प्रदर्शनी’ का आयोजन किया।

उनके शोध और निष्कर्षों का प्रगतिशील लेखकों ने प्रारंभ में विरोध किया, क्योंकि उन्होंने प्रेमचंद पर प्रचलित अनेक धारणाओं को गलत सिद्ध किया था। लेकिन हिंदी के दिग्गज लेखक जैनेन्द्र कुमार, विष्णुकांत शास्त्री, प्रभाकर माचवे, विष्णु प्रभाकर, गोपालराय, शिवदानसिंह चौहान, विवेकीराय और सर्वेश्वरदयाल सक्सेना आदि ने उनके कार्य को ऐतिहासिक और मौलिक उपलब्धि माना।

प्रवासी हिन्दी साहित्य पर डॉ. गोयनका का योगदान महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में उनकी 12 पुस्तकें प्रकाशित हुईं और उन्होंने 40 से अधिक प्रवासी लेखकों की पुस्तकों की भूमिका लिखी। उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर पहली पुस्तक लिखी, जिसे बाद में नेशनल बुक ट्रस्ट ने पुनः प्रकाशित किया। वे कई साल केंद्रीय हिंदी संस्थान और मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उपाध्यक्ष रहे।