
पूर्वी सिंहभूम/पश्चिमी सिंहभूम 19 सितंबर। आदिवासी ‘हो’ समाज और झारखंडवासियों के लिए शुक्रवार का दिन विशेष रहा। वारंग चिति लिपि के जनक और महान समाज सुधारक गुरू कोल लाको बोदरा की 106वीं जयंती पूरे धूमधाम, उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाई गई। इस अवसर पर जगह-जगह कार्यक्रम हुए और लोगों ने उनकी स्मृति को नमन करते हुए समाज और संस्कृति को बचाने का संकल्प लिया।
जमशेदपुर के परसुडीह के जसकनडीह में आयोजित समारोह में पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने लाको बोदरा की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोग, जनप्रतिनिधि और समाज के बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।
चंपाई सोरेन ने कहा, “लाको बोदरा जैसे महापुरुष को भुलाया नहीं जा सकता। हो भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने का संघर्ष जारी रहेगा। जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए समाज को हमेशा सजग रहना होगा।”
सीतारामडेरा स्थित प्रतिमा स्थल पर झामुमो नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बोदरा जी को पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
झामुमो नेता महाबीर मुर्मू ने कहा, “लाको बोदरा ने हो भाषा के लिए वारंग चिति लिपि का निर्माण कर न सिर्फ शिक्षा की नई राह खोली बल्कि समुदाय को सांस्कृतिक और साहित्यिक पहचान भी दिलाई। उनका योगदान इतिहास में अमर है।”
इस मौके पर नंदू सरदार, अभिजीत सरकार (नान्टू), अशोक यादव समेत कई स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी उनकी विरासत को समाज के लिए प्रेरक बताया।
पश्चिमी सिंहभूम (चाईबासा): हरिगुटू स्थित कला एवं संस्कृति भवन में आदिवासी हो समाज युवा महासभा ने बड़े उत्साह से जयंती मनाई। महासभा के धर्म सचिव सोमा जेराई ने लाको बोदरा की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम की शुरुआत की।
इस अवसर पर ‘दोलाबु दिल्ली 5.0’ अभियान की जानकारी साझा की गई और युवाओं से 31 अक्टूबर व 1 नवंबर को दिल्ली में आयोजित प्रदर्शन और सेमिनार में भाग लेने की अपील की गई। मुख्य मांग रही कि ‘हो’ भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
कार्यक्रम में महिला महासभा अध्यक्ष अंजु सामड, युवा महासभा राष्ट्रीय अध्यक्ष इपिल सामड, साहित्यकार दांसर बोदरा और कई पदाधिकारी मौजूद रहे।
लाको बोदरा: विरासत और संघर्ष : लाको बोदरा केवल समाज सुधारक और सांस्कृतिक योद्धा थे। उन्होंने ‘हो’ समाज को वारंग चिति लिपि देकर भाषा की नई पहचान दी। उनकी जयंती के अवसर पर एक बार फिर समाज के लोगों ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी विरासत को न सिर्फ याद रखा जाएगा बल्कि भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए संघर्ष जारी रहेगा।








