कोलकाता, 05 नवम्बर। गांव की आत्मा को समझने वाला ही भारत की आत्मा को समझ सकता है। कृष्ण बिहारी मिश्र के मानस में गांव रमता रहता था। उनका रचना संसार मिट्टी से जुड़ा था। उनके ललित निबंध संवेदनशील, मूल्यपरक और पवित्र मन का उद्गार हैं। सर्जनात्मक ऊंचाई और भारत की सर्वश्रेष्ठ परम्परा ‘मनीषी’ की झलक मिलती है। वे सचमुच भारतीय मनीषी परम्परा के संवाहक थे। साहित्य समाज के ज्यादा करीब होता है। साहित्य को समझे बिना हम समाज को नहीं समझ सकते। अपनी कुटिया में साधक के तौर पर उन्होंने कालजयी रचनाएं गढ़ीं। उनका रचना संसार बिल्कुल अलग किस्म का था। उनकी रचनाएं समाज की धड़कन का प्रतिविम्ब हैं। उनकी रामकृष्ण परमहंस के जीवन पर केंद्रित ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ अद्भुत है।
यह विचार रविवार को राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने भारतीय भाषा परिषद सभागार में आयोजित समारोह में व्यक्त किए। वे कृष्ण बिहारी मिश्र अध्ययन मण्डल के तत्वावधान में कृष्ण बिहारी मिश्र जयंती समारोह व सह-पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि समाज को गढ़ने में विचारों का अहम योगदान है। अब टेक्नोलोजी के दौर में अलग बदलाव है। परिवर्तन ही शाश्वत है। कृष्ण बिहारी मिश्र ने सामाजिक, राजनीतिक परिवर्तन को अपनी रचनाओं के माध्यम से बारीकी से बताया है।
उन्होंने कहा कि कृष्ण बिहारी मिश्र का जाना उनके निजी जीवन में भी काफी क्षति रही। वह साहित्य के दुर्लभ साधक रहे। साहित्य रचना में मिश्र शीर्ष पर थे। उनकी लेखनी को पढ़ने से एक आत्मीयता पनपती है। समाज के प्रति उनका होलिस्टिक व्यू रहा। कृष्ण बिहारी मिश्र संसार में दुर्लभ व्यक्तित्व के धनी रहे। साहित्य के अतिरिक्त समाज के बदलाव में उनकी रुचि काफी थी। उनके लेखन, चिंतन का व्यापक दायरा है। उनके लेखन की दुनिया बहुत बहुआयामी थी। हिंदी पत्रकारिता पर उनका काम शोध और काम अतुलनीय है। पत्रकारिता की दशा और दिशा तय करने में इसकी बड़ी भूमिका होगी। उनका निष्ठा व समर्पण सा जीवन रहा उनका। वह यथार्थ को समझते हुए काम करते रहे। आप उन्हें भूल नहीं सकते।
इस अवसर पर हरिवंश ने डॉ. कमल कुमार व दिव्या प्रसाद द्वारा संपादित पुस्तक ‘सांस्कृतिक चेतना के विरल साधक-कृष्ण बिहारी मिश्र’ का लोकार्पण किया।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार विश्वभर नेवर ने कहा कि कृष्ण बिहारी मिश्र पत्रकारिता के अध्येता थे। उनकी पत्रकारिता की रचनाएं पत्रकारों के लिए प्रेरक हैं। प्रधान वक्ता प्रोफेसर डॉ. राजश्री शुक्ला ने कहा कि कृष्ण बिहारी मिश्र ने एक बड़ा परिवार सींचा था। उनके उस आंगन में काफी भीड़ जमा होती थी। उनकी चर्चा होती ही रहती थी। लेखन से मूल रूप में संत और मनीषी परम्परा को उन्होंने जोड़ा था। आडंबर पूर्ण रवैये को देखकर वह व्यथित होते थे। उनकी खासियत रही कि वह गहरे मर्म के साथ व्यक्ति को पहचान लेते थे।
विशिष्ट अतिथि हिंगराज दान रतनू ने कहा कि कृष्ण बिहारी मिश्र का साहित्य हमारे लिए पाथेय है। मौके पर डॉ. अनिल शुक्ल मंचस्थ थे। प्रमोद शाह ने संस्था की गतिविधियों की जानकारी देते हुए स्वागत भाषण दिया। संयुक्त सचिव अजयेन्द्र नाथ त्रिवेदी ने कार्यक्रम का संचालन किया। संयोजक कमलेश कृष्ण मिश्र ने धन्यवाद दिया।
इस अवसर पर डा.रेशमा पंडा मुखर्जी, पुरुषोत्तम तिवारी, श्रीमोहन तिवारी, अविनाश गुप्त, दुर्गा व्यास, प्रो. वसुंधरा मिश्र, प्रो. सत्यप्रकाश तिवारी, प्रो. रामप्रवेश रजक, नंदलाल सेठ, पत्रकार कौशल किशोर त्रिवेदी, राज मिठौलिया, लोकनाथ तिवारी, सुशील कुमार, शिप्रा मिश्र, श्रीपर्णा तरफदार व अन्य गणमान्य मौजूद थे।