श्रीनगर, 25 नवंबर । दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के ओकाई गांव में कड़ाके की ठंड बढ़ने के साथ पारंपरिक ‘कांगड़ी’ यानि आग जलाने वाले बर्तन की मांग बढ़ गयी है इसी के मद्देनज़र प्रतिदिन कम से कम 5000 कांगडी तैयार की जा रही है।
स्थानीय तौर पर ‘कांगेर’ या ‘कांगड़ी’ एक मिट्टी का बर्तन (अंगीठी) होती है जो ठंड में आग सेकने के काम आती है। सर्दियों में कश्मीर में किसी भी घर में किसी मेहमान के आने पर उसका स्वागत गर्म ‘कांगड़ी’ से ही किया जाता है। मेहमान को चाय-नाश्ता पेश करने से पहले गर्मा-गर्म ‘कांगड़ी’ ही सौंपी जाती है, ताकि वो ठंड़ से फौरन अपना बचाव कर सके।
कारीगर मंज़ूर अहमद शेखसाज़ ने यूनीवार्ता को बताया, ‘कांगड़ी’ कश्मीर घाटी के विभिन्न क्षेत्रों में बनायी जाती है, लेकिन ओकाई गांव में हर दिन कम से कम 5000 कांगड़ी तैयार की जाती है।
उन्होंने कहा, गांव के सभी पुरुष महिलाएं और युवा घाटी की प्राचीन कला को जीवित रखते हुए और अपनी आजीविका कमाने के लिए इस पेशे में लगे हुये हैं।
कारीगर मंज़ूर ने कहा, “पहले केवल 30 शेखसाज़ परिवार आजीविका कमाने के लिए कांगड़ी बनाने के पेशे से जुड़े थे, लेकिन समय बीतने के साथ पूरे गांव ने इस काम को अपना लिया है।”
उन्होंने कहा कि ‘कांगड़ी’ बनाने की सामग्री जिसमें टहनियाँ और मिट्टी के बर्तन जिन्हें ‘कुंडल’ कहा जाता है, विभिन्न क्षेत्रों से ले जाए जाते हैं और फिर घरों में तैयार किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे परिवार भी हैं जो ‘कांगड़ी’ बनाने में आवश्यक वस्तुयें स्वयं बनाते हैं।
मंज़ूर ने कहा, ‘कांगड़ी’ बनाने का पेशा ओकाई के निवासियों के लिए नया नहीं है, लेकिन यह उनके पूर्वजों का पेशा है जिस पर उनकी आजीविका निर्भर करती है। उसने कहा कि ओकाई के कम से कम एक हजार ग्रामीण वर्तमान में अपनी आजीविका कमाने के लिए इस पेशे से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि थोक विक्रेता इन ‘कांगड़ियों’ को खुले बाजारों में बेचने के लिए लाते हैं और खरीदार इसे खरीदते हैं।
उन्होंने कहा कि ओकाई केवल एक मात्र ऐसा गांव नहीं है जहां ज्यादातर लोग ‘कांगड़ी’ बुनते हैं। इसे चार-ए-शरीफ, बांदीपोरा और अनंतनाग सहित अन्य स्थान में भी बनाया जाता हैं जहां हर साल ‘कांगड़ी’ के लोकप्रिय ब्रांड तैयार किए जाते हैं और लोग खुशी-खुशी उन्हें खरीदते हैं। उन्होंने कहा कि चरारी शरीफ शहर एक अजीबोगरीब प्रकार की ‘कांगड़ी’ के लिए सबसे प्रसिद्ध है जिसे ‘चरर कांगड़ी’ कहा जाता है। अनंतनाग भी इसका प्रमुख उत्पादक है।
मंज़ूर ने सरकार से ‘कांगड़ी’ कला को बढ़ावा देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि कश्मीर घाटी के अन्य हस्तशिल्प की तरह इसे बढ़ावा देने के लिये एक योजना शुरू की जानी चाहिये। उन्होंने कहा, “अगर सरकार हमारे लिए भी योजनाएं बनाएगी तो हमारे इस पेशे का भी बड़े पैमाने पर विकास होगा।”
व्यवसायी मोहम्मद रमज़ान ने कहा, “मैं कई वर्षों से कांगड़ी खरीदने और बेचने के व्यवसाय से जुड़ा हुआ हूं और अपनी आजीविका संतोषजनक ढंग से चला रहा हूं।” उन्होंने हालाँकि कहा कि बीतते समय के साथ “काँगड़ी” की माँग कम होती जा रही है।
यह पारंपरिक अंगीठी वर्तमान में न केवल कश्मीर घाटी में उपलब्ध है, बल्कि इसने अमेज़ॅन, फ्लिपकार्ट और अन्य बाजारों के प्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त ऑनलाइन व्यापार केंद्रों पर भी अपने ग्राहक ढूंढ लिए हैं। सूत्रों के मुताबिक “कांगड़ी” भारत में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों तक भी पहुंच गयी है जहां कश्मीरी लोग रहते हैं।