कोलकाता, 18 अक्‍टूबर। भगवान जिसे अपनाना चाहते है उसकी सांसारिक ममता को छुड़ा देते हैं,जैसे मां बच्चों के हाथों से खिलौना छीन लेती है। कर्म का शुद्धिकरण होने से भगवान की कृपा का अनुभव होने लगता है। प्रत्येक व्यक्ति को गृहस्थ आश्रम में कम से कम एक घंटा साधना और एक घंटा सत्संग करना चाहिए। सत्संग करने से बुद्धि और साधना करने से मन निर्मल होता है। बुद्धि और मन निर्मल होने पर आनंद की अनुभूति होती है।

गुरु मंत्र का जप, भगवान की पूजा और ध्यान करना साधना में आता है।साधना का सूत्र है जितना अपने शरीर का ध्यान रखते हैं ,उससे ज्यादा ठाकुर का ध्यान रखने की जरूरत हैं।यहीं से साधना का प्रारंभ होता है।कोई न कोई भाव से भगवान से जुड़ाव होने पर समय-समय पर भगवान भक्त को निर्देश देते रहते हैं।साधना  करने का सही समय ब्रह्ममुहूर्त होता है।भगवान जिससे सिद्ध हो जाए उसे साधना कहते हैं।साधना जब सिद्ध हो जाती है तब भक्त और भगवान में बातचीत होने लगती है।सुखी वही है जिसका जुड़ाव भगवान से है।जो लोग मंदिरों में और पंडालों में भगवान का दर्शन वीआईपी या पैसे देकर या टिकट कटाकर करते हैं धर्म की दृष्टि से गलत है पर भक्ति की दृष्टि से सही है।

भक्ति -दृष्टि में जैसे भी हो भगवान से जल्दी मिलन हो जाए, सब सही है।ये बातें  स्वामी गिरीशानंद  सरस्वती महाराज  ने मंजू-अरविंद नेवर के निवास स्थान पर भक्तों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए कही। इस अवसर पर मुरारीलाल दीवान,विनोद माहेश्वरी, राजू चौधरी,सज्जन सिंघानिया,संदीप अग्रवाल,  बंसती जाजू, प्रभात पंसारी ,बबिता दीवान, अमिता दीवान, विवेक दीवान ,श्याम कानोड़िया ,संतोष कानोड़िया,सुधा कानोड़िया सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।