
कोलकाता, 18 जून ।
नदिया जिले की कालिगंज विधानसभा सीट पर गुरुवार को होने वाले उपचुनाव को लेकर तीन प्रमुख राजनीतिक ध्रुवों में अलग-अलग रणनीतियां और अपेक्षाएं साफ़ तौर पर दिखाई दे रही हैं। तृणमूल कांग्रेस जहां अपनी संभावित जीत को लेकर आश्वस्त दिख रही है, वहीं भाजपा की रणनीति पूरी तरह वोट ध्रुवीकरण पर केंद्रित है। उधर, वाम समर्थित कांग्रेस भी इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है, भले ही जीत की संभावना क्षीण हो।
कालीगंज से दिवंगत विधायक नासिरुद्दीन अहमद की बेटी अलीफा अहमद को तृणमूल ने प्रत्याशी बनाया है। पढ़ी-लिखी और पेशेवर छवि वाली अलीफा को लेकर पार्टी का एक बड़ा वर्ग उत्साहित है। पार्टी के प्रदेश महासचिव कुणाल घोष ने दावा किया कि “हमारी प्रत्याशी बहुत योग्य है और जनता पूरे क्षेत्र में विकास के लिए तृणमूल को वोट देगी।” हालांकि उन्होंने जीत के अंतर पर कोई निश्चित आंकड़ा नहीं बताया, लेकिन कहा कि जीत “बड़े अंतर” से होगी।
तृणमूल के प्रदेश उपाध्यक्ष जयप्रकाश मजूमदार ने तो दावा किया कि “हमारी जीत का अंतर 50 हजार से अधिक रहेगा।” उनके अनुसार, विपक्षी दलों का क्षेत्र में कोई मजबूत संगठन नहीं है, जिससे अधिकांश बूथों पर वे एजेंट तक नहीं बैठा पाएंगे।
हालांकि भाजपा ने 2021 में यह सीट नहीं जीती थी और पिछली बार उसे तृणमूल से लगभग 47 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था, फिर भी इस बार उसकी तैयारी ज़ोरदार है। पार्टी ने 13 पंचायत क्षेत्रों में नेताओं को ज़िम्मेदारी दी है, और प्रचार में सुकांत मजूमदार और शुभेंदु अधिकारी जैसे शीर्ष नेता भी शामिल हुए।
भाजपा के राज्य उपाध्यक्ष और सांसद जगन्नाथ सरकार के अनुसार, “हमने पिछली बार 80 प्रतिशत हिंदू वोट प्राप्त किया था, इस बार यह आंकड़ा 90 प्रतिशत तक जाएगा।” उनका दावा है कि यह वोट कांग्रेस, वाम और तृणमूल के खातों से ही आएगा। हालांकि उन्होंने सीधे जीत का दावा नहीं किया, लेकिन इशारा किया कि अगर तृणमूल के भीतर असंतोष और अंदरूनी विरोध से वोटों का बंटवारा हुआ, तो भाजपा को फायदा मिल सकता है।
——-
वाम-कांग्रेस की असहज स्थिति में भी उम्मीद
एक समय कालीगंज कांग्रेस का गढ़ रहा था। 1951 से अब तक हुए 16 चुनावों में से 11 बार यह सीट कांग्रेस के पास रही है। वाम मोर्चा ने भी 20 वर्षों तक इस सीट पर राज किया। लेकिन अब कांग्रेस और वाम दोनों ही कमजोर संगठनात्मक स्थिति में हैं। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “हम विभाजन की राजनीति के शिकार हुए हैं। हमारे वोटरों का एक हिस्सा तृणमूल में और एक हिस्सा भाजपा के साथ चला गया है।”
उन्होंने स्वीकार किया कि संगठन कमजोर हो चुका है, लेकिन चुनाव में लड़ाई जारी है। अधीर ने कहा, “हम जीतने का दावा नहीं कर रहे, लेकिन यह चुनाव हमारे लिए संगठनात्मक पुनरुत्थान का अवसर हो सकता है।”
——–
इतिहास और जनसांख्यिकी की भूमिका
कालीगंज में मतदाता संख्या लगभग 2.5 लाख है। पिछली बार तृणमूल को लगभग 1.12 लाख और भाजपा को 65 हजार वोट मिले थे। मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के कारण भाजपा के लिए यह सीट परंपरागत रूप से चुनौतीपूर्ण रही है। फिर भी इस बार पार्टी सत्ता विरोधी लहर की वजह से जीत की उम्मीद कर रही है।