कोलकाता, 09 सितंबर। तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और पूर्व आईएएस अधिकारी जवाहर सरकार के संसद से इस्तीफा देने और राजनीति छोड़ने के फैसले पर पार्टी के भीतर आंतरिक मतभेद उभर कर सामने आए हैं।
एक तरफ, तृणमूल कांग्रेस के नेता कुणाल घोष ने जवाहर सरकार के फैसले को उनका व्यक्तिगत मामला बताया है, लेकिन उन्होंने सरकार द्वारा अपने फैसले के पीछे बताए गए कारणों की वैधता को भी स्वीकार किया है। घोष ने यहां तक कहा कि तृणमूल कांग्रेस में उनके जैसे आज्ञाकारी सिपाही हैं जो सरकार द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में उल्लेखित कुछ बातों पर सहमत हैं। इस पत्र में सरकार ने राज्यसभा से इस्तीफा देने और राजनीति छोड़ने के अपने फैसले की जानकारी दी थी।
वहीं, दूसरी ओर, चार बार के लोकसभा सांसद सौगत रॉय और पार्टी के युवा नेता देबांग्शु भट्टाचार्य ने जवाहर सरकार के फैसले पर तीखा हमला बोला है। रॉय के अनुसार, जवाहर सरकार जैसे व्यक्तियों को, जिनका पार्टी के साथ गहरा वैचारिक जुड़ाव नहीं है, नामांकन नहीं दिया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि चूंकि जवाहर सरकार ने अपने विचारों को पार्टी के भीतर व्यक्त करने के बजाय सार्वजनिक रूप से प्रकट किया है, इसलिए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
इसी प्रकार, देबांग्शु भट्टाचार्य ने जवाहर सरकार को “जल-कुम्भी” के समान बताया, जो ज्वार के साथ बहती है, उसके खिलाफ नहीं। उन्होंने कहा कि “इतिहास उन लोगों को शर्मिंदा करता है जो युद्ध के समय भाग जाते हैं।”
रविवार को, जवाहर सरकार ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक पत्र के माध्यम से राज्यसभा से इस्तीफा देने और राजनीति छोड़ने का फैसला सुनाया। उन्होंने हाल ही में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के भयावह बलात्कार और हत्या और राज्य सरकार की आम भ्रष्टाचार को इस फैसले के कारण के रूप में उद्धृत किया।