
शनिवार,7 जुलाई । स्थानीय आई.सी.सी.आर. सभागार में शनिवार शाम नज़्मों की बरात’ में नज़्मों की बरसात हुई।स्थानीय साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘संस्कृति सौरभ’ के सदस्यों द्वारा पेश की गई हिंदी फिल्मों की नज़्मों ने सब का मन मोह लिया।संगीत के साथ गाई गईं ये नज़्में सबने बहुत पसंद की
-‘बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत गाता जाए बंजारा/सलामे-हसरत क़बूल कर लो/आपके हसीन रुख पे आज नया नूर है/आपकी नज़रों ने समझा/अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की /दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें /जो बात तुझ में है तेरी तस्वीर में नहीं/रहें न रहें हम महका करेंगे/इक हसीं शाम को दिल मेरा खो गया/कहीं एक मासूम नाज़ुक-सी लड़की/हमें काश तुमसे मुहब्बत न होती/ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात /ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं/आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे’
प्रमोद शाह की तैयार की गई सराहनीय स्क्रिप्ट और उनके साथ विकास रूँगटा के सञ्चालन ने कार्यक्रम में चार चाँद दिए।उन्होंने नज़्मों की बारीकियों को बताते हुए दर्शकों का मन मोह लिया।
चंद्र शेखर लखोटिया /नंदिनी सराफ /नीता सिंघवी /मीता गाड़ोदिया /प्रदीप रस्तोगी /प्रमोद शाह / प्रीति सराफ /बिमल नौलखा /रमेश गनेड़ीवाला /राजेंद्र सिंह/संगीता परसरामका /संदीप अग्रवाल /सरिता बेंगाणी/विकास रूँगटा ने बड़ी दिलकश नज़्में पेश कीं,जिनको सुनकर श्रोता झूम उठे।
इन्हीं सदस्यों द्वारा बिना संगीत के भी गाई गईं इन नज़्मों को कौन भुला सकता है –
‘ये ज़िन्दगी के मेले दुनिया में कम न होंगे/ये ज़िन्दगी उसी की है,जो किसी का हो गया/मरना तेरी गली में/वो जब याद आये बहुत याद आये/बाद मुद्दत के ये घड़ी आयी/वो सुबह कभी तो आएगी/तस्वीर बनाता हूँ तस्वीर नहीं बनती/ऐ मेरे दिले-नादाँ तुम ग़म से न घबरानातुम अगर साथ देने का वादा करो/मौसम है आशिक़ाना/दिल लगाकर हम ये समझे/रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ/.ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है/औरत ने जनम दिया मर्दों को’
कार्यक्रम का आरम्भ किया संस्था के सचिव बिमल नौलखा ने और स्वागत वक्तव्य दिया अध्यक्ष श्री बिजय कानोड़िया ने।उपाध्यक्ष विनीत रुइया,सहसचिव प्रदीप जीवराजका और सुभाष सोंथालिया,कोषाध्यक्ष जतन बरड़िया,संस्थापक सदस्य महेश चंद्र शाह,विनोद कुमार गुप्ता कार्यकारिणी सदस्य राजेंद्र खंडेलवाल,आनंद मेहता व्यवस्था को सुचारू रूप दे रहे थे।
संस्था के संरक्षक हरि प्रसाद चौधरी,गजानंद अग्रवाल और आभा- विनोद कुमार बागड़ोदिया कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे थे।
महानगर के साहित्य जगत से जीतेन्द्र जितांशु,प्रदीप धानुक,प्रभाकर चतुर्वेदी,मीनाक्षी सांगानेरिया,रवि प्रताप सिंह,राउल पुष्प,रेशमी पाण्डा चटर्जी,विष्णु सिखवाल,सिराज ख़ान बातिश की उपस्थिति ने समारोह को गरिमा प्रदान की।
संस्था के सदस्यों एवं रसिक श्रोताओं से सभागार खचाखच भरा हुआ था।