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नई दिल्ली, 11 फ़रवरी । केंद्रीय मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने राज्य सरकारों, अनुसंधान संस्थानों और अन्य संबंधित एजेंसियों के सहयोग से प्राकृतिक मोती की खेती (नेचुरल पर्ल फारमिंग) को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं।
यह जानकारी मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी। इसमें बताया गया कि मत्स्य पालन विभाग द्वारा की गई प्रमुख पहलों में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कुल 461 लाख रुपये की लागत से 2307 बाइवाल्व खेती (मसल्स, क्लैम्स, मोती आदि सहित) इकाइयां स्वीकृत की गईं। इसी तरह मत्स्यपालन विभाग द्वारा आयोजित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मंचों पर प्राकृतिक मोती की खेती और इसके आर्थिक महत्व को प्रदर्शित करने के लिए मोती किसानों को सहायता दी गई।
इसी क्रम में पीएमएमएसवाई के अंतर्गत पर्ल क्लस्टर सहित मात्स्यिकी और जलीय कृषि क्षेत्र में उत्पादन और प्रसंस्करण क्लस्टरों के विकास के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को प्रसारित की गईं। झारखंड सरकार के सहयोग से हजारीबाग, झारखंड में प्रथम पर्ल क्लस्टर उत्पादन विकास और प्रसंस्करण की अधिसूचना और समुद्री मोती सीप की प्राकृतिक आबादी को बढ़ाने के लिए, आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) ने तमिलनाडु तट के तूतीकोरिन क्षेत्र में 1.65 करोड़ हैचरी उत्पादित सीड रैंच किए हैं।
गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, ओडिशा, केरल, राजस्थान, झारखंड, गोवा और त्रिपुरा के कुछ इलाकों में मोती पर्ल कल्चर कार्य किया जा रहा है। राज्य सरकारों द्वारा राज्यवार प्राकृतिक मोती उत्पादन के आंकड़े सूचित नहीं किए गए है। राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) ने बताया है कि झारखंड के हजारीबाग जिले में 1.02 लाख मोती उत्पादित हुए हैं। मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने प्राकृतिक मोतियों की मार्केट लिंकेज को मजबूत करने के लिए राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ कई बैठकें की हैं।