भूजल संचय, समीक्षा, साझेदारी व स्थायित्व से समरसता, संतुष्टि व समृद्धि पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय
शुभारम्भ कार्यक्रम में जुड़े देश विदेश के प्रमुख वैज्ञानिक व ग्रामवासी
उदयपुर, 06 मार्च। हर और यह आशंका व्यक्त की जाती रही है कि अगला विश्व युद्ध पानी के कारण होगा, लेकिन भारत के उदयपुर में हो रहा एक प्रयोग इस आशंका को निर्मूल कर रहा है। भारत का ग्रामीण समाज वैज्ञानिक तरीके से भूजल का मापन, पुनर्भरण, प्रबंधन तो कर ही रहा है, वह पानी को परस्पर बांट भी रहा है। यह संभव हो रहा है ग्राम भूजल सहकारिता समितियों से, जहां जाति, वर्ग, ऊंच-नीच, महिला-पुरुष के भेद से ऊपर उठकर जल के बेहतर प्रंबंधन और उपयोग की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। पानी सबका – सब पानी के, यह भावना सामाजिक समरसता, सामूहिकता व सहभागिता के साथ जल प्रबंधन की भारतीय संस्कृति को पुनर्स्थापित कर रही है।
ग्राम सहभागिता से भूजल सुप्रबंधन की विश्व प्रसिद्ध मारवी योजना के तहत एक नई पहल है। उदयपुर के धारता गांव में ग्रामवासियों ने मिलकर भूजल सहकारिता समिति बना ली है। बुधवार को उदयपुर के हिंता गांव में आयोजित कार्यक्रम में धारता वाटरशेड की ग्राम सहकारिता समिति का विधिवत शुभारंभ हुआ।
उल्लेखनीय है कि ग्राम भूजल समिति (वीजीसी) का राजस्थान सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1958 के तहत परशुराम भूजल सहकारिता समिति के रूप में पंजीकरण कराया गया है। इसमें बाइस हेक्टेयर भूमि क्षेत्र में स्थित तीस परिवार अपने तीन खुले कुओं और तीन बोरवेल के पानी को सिंचाई, पेयजल इत्यादि के लिए साझा कर रहे हैं। सिंचाई पाइप इत्यादि वितरण प्रणाली व अन्य सम्बंधित साधनों को आईसीआईसीआई फाउंडेशन की वित्तीय मदद से स्थापित किया गया है। इस मदद से 13 रिचार्ज पिट्स के साथ लगभग ढाई किलोमीटर पाइपलाइन, डेढ़ किलोमीटर खेत मेड़बंदी व नीलगाय इत्यादि वन्य जीवों से फसलों की रक्षा के लिए ढाई किलोमीटर बाड़ लगाई गई है।
भूजल सहकारिता समिति के अध्यक्ष जगदीश भट्ट के सान्निध्य में हुए शुभारम्भ कार्यक्रम को वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, विद्या भवन तथा समस्त मारवी सहयोगी संस्थाओं द्वारा आयोजित किया गया। इसमें देश विदेश के प्रमुख वैज्ञानिकों व ग्रामवासियों ने भाग लिया।
योजना के प्रेरक वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर व इसी गांव के निवासी बसंत माहेश्वरी ने बताया कि भूजल सहकारिता समिति मॉडल किसानों को अपने भूजल की निगरानी करने, पुनर्भरण करने, बुनियादी ढांचा निर्माण करने और भूजल को समान और स्थायी रूप से साझा करने के लिए प्रशिक्षित कर उन्हें सशक्त बनाता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि उदयपुर में प्रारंभ हुआ यह प्रयास पूरे विश्व को राह दिखायेगा।
मुख्य अतिथि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि मारवी परियोजना ने यह साबित कर दिया है कि किसानों को अपने जल संसाधनों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने की क्षमता है। विशेष आमंत्रित अतिथि पूसा केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर पीएल गौतम ने जलवायु परिवर्तन और जल मांग की चुनौतियों के बीच स्थानीय जल सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और बेहतर आजीविका सुनिश्चित करने की इस पहल जल की अद्वितीय बताया।
वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय की डीन ऑफ साइंस प्रोफेसर ग्रेसिएला मेट्टर्निच ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के जल प्रबंधन के भागीदारी प्रयासों पर गर्व व्यक्त किया। सीटीएई के डीन प्रोफेसर पीके सिंह ने कहा कि भूजल को साझा करना और बनाए रखना वीजीसी सदस्यों का मुख्य उद्देश्य है। इससे उनकी आजीविका बढ़ी है।
आईसीआईसीआई फाउंडेशन के अमर दीक्षित ने ख़ुशी जताई कि भूजल सहकारिता समिति के कार्य के तत्काल प्रभाव भी नजर आए हैं। खरीफ सीजन में मक्का की बढ़िया फसल हुई और अब गेहूं की बंपर फसल होने की संभावना है।
विद्या भवन पोलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ. अनिल मेहता ने कहा कि सहकारिता समिति के ध्येय चार भूजल स – संचय, समीक्षा, साझेदारी व स्थायित्व ने ग्राम समाज में समरसता , संतुष्टि व समृद्धि को स्थापित किया है।
कार्यक्रम में विद्या भवन केवीके के हैड डॉ प्रफुल्ल भटनागर, सीएसआईआरओ के फेलो डॉ राय कूकणा सहित अन्तरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों जॉन वार्ड, रोजर पेखम, धर्मा हेगड़े ने भी विचार रखे।
उल्लेखनीय है कि ग्राम भूजल सहकारी (वीजीसी) पड़ोसी किसानों के बीच एक सहयोगी प्रयास है जिसका उद्देश्य ग्रामीण स्तर पर साझा भूजल संसाधनों का कुशलतापूर्वक प्रबंधन करना है। इसमें किसान स्वेच्छा से अपने भूजल संसाधनों को साझा करने के लिए साथ जुड़ते हैं। चर्चा और सामूहिक निर्णय के माध्यम से सहकारी समिति सदस्य मौसमी योजनाएं बनाते हैं और सिंचाई जल को प्रभावी ढंग से संचित-वितरित करने के लिए उचित जल बजट भी बनाते हैं। वीजीसी मॉडल भूजल संसाधनों के स्थायी प्रबंधन के लिए समुदाय-संचालित पहल है। इससे किसानों के बीच सहयोग और समान वितरण की भावना भी मजबूत होती है।