उत्तर-पूर्व की सभ्यता, संस्कृति व जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा चीन का यह बांध: दिलीप सैकिया
नई दिल्ली/गुवाहाटी, 10 फरवरी । चीन के तिब्बत के यारलुंग ज़ोंग्बो या ब्रह्मपुत्र नद पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने के ऐलान के विरुद्ध दरंग-उदालगुरी के सांसद और असम प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप सैकिया ने आवाज उठाई है।सैकिया ने केन्द्र सरकार से चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता कर इस बांध के निर्माण को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया।
नई दिल्ली में सोमवार को संसद में शून्यकाल के दौरान सांसद दिलीप सैकिया ने कहा कि चीन तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नद पर दुनिया के सबसे बड़े बांध का निर्माण करने जा रहा है। चीन का यह बांध असम और उत्तर पूर्व की जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा, जो क्षेत्र की सभ्यता, संस्कृति और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाएगा।
सैकिया ने कहा कि ब्रह्मपुत्र नद तिब्बत से निकलती है और चीन, अरुणाचल प्रदेश और असम होते हुए बांग्लादेश की ओर बहती है। चीन में इस नद को यारलुंग ज़ोंग्बो कहा जाता है। ब्रह्मपुत्र नद पर बनने वाला बांध हिमालय की विशाल घाटी में तिब्बती पठार के पूर्वी छोर पर बनाया जाएगा, जो अरुणाचल प्रदेश की सीमा के करीब है। यह क्षेत्र रिंग आफ फायर के जोन में आता है। ऐसी स्थिति में, इस स्थल पर इतना बड़ा निर्माण कार्य पर्यावरण और स्थानीय जनसंख्या के लिए एक बड़ा खतरा है।
उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में अक्सर भूकंप आते रहते हैं, इसलिए बांध के निर्माण से पारिस्थितिकी तंत्र पर भारी दबाव पड़ेगा, जिससे कई दुर्घटनाएं हो सकती हैं। पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश के राज्य पहले से ही भयंकर बाढ़ का सामना कर रहे हैं। बांध के कारण होने वाला जलवायु परिवर्तन इस क्षेत्र में भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ जैसी चुनौतियों को और बढ़ाएगा, जो इसकी सभ्यता, पर्यावरण, संस्कृति और सामाजिक जीवन के लिए बड़ा खतरा साबित होगा।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने दोहराया कि चीन लगभग 137 अरब डॉलर की लागत से बांध बनाने जा रहा है, जो दुनिया का सबसे बड़ा बांध होगा। निर्माण के लिए योजनाबद्ध बांध में बड़ी मात्रा में पानी संग्रहित किया जा सकता है। निश्चित रूप से, बांध के निर्माण के बाद चीन नदी के तल पर नियंत्रण रखेगा और भविष्य में उत्तर पूर्व भारत में हमेशा पानी की कमी या बाढ़ संकट रहेगा। अरुणाचल प्रदेश में सीमा के बहुत करीब चीन का प्रभाव भी बढ़ेगा। सैकिया ने इस मुद्दे पर चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता कर केंद्रीय सरकार से असम और उत्तर पूर्व के भविष्य को सुरक्षित करने के हित में इस बांध के निर्माण को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया।