नई दिल्ली, 13 अगस्त ।

संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त ट्रस्ट इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीएसआईपी) के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता ज्ञापन भारत में विज्ञान और संस्कृति को एक ही मंच पर एकीकृत करने की पहली पहल है, जिसका उद्देश्य देश की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के सामने प्रदर्शित करना है।

आईजीएनसीए में बुधवार को आयोजित समारोह में समझौता ज्ञापन पर डॉ. सच्चिदानंद जोशी और प्रो. महेश जी. ठक्कर ने हस्ताक्षर किए। डॉ. अचल पंड्या, प्रमुख एवं प्रोफेसर, संरक्षण प्रभाग, आईजीएनसीए और डॉ. शिल्पा पांडे, वरिष्ठ वैज्ञानिक, बीएसआईपी, इस सहयोग के लिए नोडल अधिकारी के रूप में कार्य करेंगे।

आईजीएनसीए परिसर में आयोजित कार्यक्रम में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा संचालित 11 पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए एक कार्यक्रम की भी शुरुआत की गई। जिसका उद्देश्य समकालीन शिक्षा में पारंपरिक ज्ञान को समाहित करना है। कुशल पेशेवरों को विकसित करने के लिए डिज़ाइन किए गए ये पाठ्यक्रम व्यावहारिक प्रशिक्षण और व्यावहारिक अनुभव प्रदान करते हैं, जिससे शिक्षार्थियों, विशेषज्ञों और जीवंत परंपराओं के बीच सार्थक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बीएसआईपी के निदेशक प्रो. महेश जी ठक्कर थे। इस अवसर पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, डीन (अकादमिक) प्रो. प्रतापानंद झा, अकादमिक इकाई के प्रभारी प्रो. अरुण भारद्वाज और संबंधित प्रभागों के प्रमुख और डीन भी उपस्थित थे।

प्रो. महेश जी. खट्टर ने कहा कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और बीएसआईपी के बीच सहयोग विज्ञान, कला और संस्कृति को एक साथ लाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इस पहल से अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में जन जागरूकता बढ़ेगी और युवा पीढ़ी प्रेरित होगी। यह पहल न केवल हमारे इतिहास और विरासत को समझने के लिए है, बल्कि भविष्य के लिए उनके संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। यह विज्ञान, कला और संस्कृति को एक मंच पर लाने के लिए आईजीएनसीए के साथ एक संयुक्त प्रयास है। उन्होंने आगे कहा कि यही कारण है कि आज समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं – ताकि भविष्य में और अधिक प्रदर्शनियां, शोध और प्रकाशन किए जा सकें और लोगों को पृथ्वी के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में जागरूक किया जा सके।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने आईजीएनसीए को एक जहाज़ बताया, जिसका केवल एक-तिहाई हिस्सा पानी के ऊपर दिखाई देता है जबकि दो-तिहाई हिस्सा पानी के नीचे छिपा रहता है, जो उस विशाल सांस्कृतिक भंडार का प्रतीक है जिसकी अभी खोज की जानी है। डॉ. जोशी ने आईजीएनसीए की व्यापक गतिविधियों की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आईजीएनसीए ने नए संसद भवन की कलाकृतियों और भारत मंडपम में दुनिया की सबसे बड़ी अष्टधातु नटराज प्रतिमा से लेकर ओसाका एक्सपो में इंडिया पैवेलियन और 6,50,000 गांवों की सांस्कृतिक विरासत का मानचित्रण करने वाली महत्वाकांक्षी ‘मेरा गांव, मेरी धरोहर’ परियोजना में अहम भूमिका निभाई।