कोलकाता, 17 अप्रेल । जब तक जीव को संसार की लात नहीं या संत की बात नहीं लगती तब तक प्रभु का दर्शन नहीं होता। संत की बात मानकर प्रभु के पास आने पर सम्मान मिलता है।
रावण की लात खाकर विभीषण भगवान राम के पास आया तो उसे भगवान के दर्शन हुए पर उसे वह सम्मान जगत में नहीं मिला। आज कोई भी अपने बच्चों का नाम विभीषण नहीं रखता।
जीवन को सार्थक बनाने के लिए आशीर्वाद चाहिए। यह आशीर्वाद तो तीन के चरणों की सेवा मिलता है-माता,पिता और गुरुदेव। इन तीनों के चरणों में आशीर्वाद की गंगा बहती है। प्रभु की कृपा से संत का दर्शन होता है। ऐसे संतों की वाणी पर जो सवारी करता है वह सीधे भगवान के चरणों में आ जाता है।
हनुमान जी भगवान राम से बोले कि आपके तरकस में वह बाण नहीं जो भरत के पास है। आपके बाण में भयंकर विध्वंस की मारक क्षमता है पर आपके पास कोई बाण नहीं जो आपके चरणों के किसी को ला दे। भरत परम संत है। भरत के बाण से मैं सीधे आपके चरणों में आ गया। भगवान राम के सम्मुख रहने से जीव को कोई मार नहीं सकता।
रावण के मरने पर बिलखती हुई मंदोदरी कहती है,हे नाथ!यदि आप राम के विमुख न होते और न ही उनका विरोध करते तो यह आपकी हालत नहीं होती।
भगवान राम अयोध्या आने के पूर्व भगवान रामेश्वर की पूजा सीता के साथ करते है।राम सीता से कहते हैं कि इस युद्ध में भगवान शिव तटस्थ रहे तभी रावण को मार सका। रावण भगवान शिव का शिष्य था। जिस पर गुरुदेव की कृपा होती है उसे कोई मार नहीं सकता। ये बातें राममूर्ति बंसल परिवार के तत्वावधान में श्रीराम कथा पर प्रवचन करते हुए इस्कॉन हाउस सभागार में कही।श्रद्धालुओं का स्वागत प्रेमलता-रामगोपाल बंसल,मीरा-सजन बंसल व श्रेया-सुनील बंसल ने किया।