कोलकाता, 13 नवंबर । पश्चिम बंगाल के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में पिछले वित्तीय वर्ष (2023-24) के दौरान बिना सरकारी अनुबंध के बड़ी मात्रा में दवाओं और इनहेलर की खरीद का मामला सामने आया है। इस मामले को लेकर अस्पताल प्रशासन पर वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं।

प्राप्‍त जानकारी के मुताबिक, आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज ने हुगली जिले के रिषड़ा स्थित ‘ए. एस. मेडिकल एजेंसी’ नामक एक निजी एजेंसी से बड़ी मात्रा में श्वसन रोग से संबंधित दवाएं और इनहेलर खरीदे। यह एजेंसी सरकार द्वारा चयनित विक्रेताओं की सूची में नहीं थी और इसके पास अस्पताल को दवाएं आपूर्ति करने का कोई सरकारी अनुबंध भी नहीं था। सरकारी नियमों के अनुसार अस्पतालों को आवश्यक दवाओं की खरीद सरकारी एजेंसियों और अधिकृत विक्रेताओं से ही करनी होती है, परंतु इस मामले में ‘लोकल परचेज़’ के माध्यम से बाहर की कंपनी से दवाएं खरीदी गईं।

सीबीआई के एक अधिकारी के मुताबिक, पिछले वर्ष सरकारी चयनित विक्रेताओं से दवा खरीदने के बावजूद आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज ने सरकारी अधिकृत विक्रेताओं की अपेक्षा निजी कंपनी से लगभग 60 लाख रुपये की दवाएं खरीदीं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य के अन्य बड़े अस्पतालों ने सरकारी अनुबंध के तहत ही दवाएं खरीदी थीं, लेकिन आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज ने चार लाख 98 हजार रुपये के इनहेलर खरीदने के साथ-साथ रिषड़ा की इस एजेंसी से लगभग दो करोड़ रुपये के दवाओं की खरीद की।

अस्पताल में वित्तीय अनियमितताओं की ओर इशारा करते हुए डॉक्टरों का कहना है कि आर.जी. कर में बृहद स्तर पर दवा खरीद के नियमों का उल्लंघन हुआ है। पश्चिम बंगाल डॉक्टर फोरम के सदस्य डॉ. पुण्यब्रत गुन ने आरोप लगाया कि “अस्पताल के प्रिंसिपल संदीप घोष के कार्यकाल के दौरान निम्न गुणवत्ता की दवाएं अस्पताल में लाई गईं, और इस दौरान भारी कट मनी ली गई।” स्वास्थ्य विभाग से इस मामले की जांच की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि इन भ्रष्टाचार के मामलों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।

इस पर पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य सचिव नारायण स्वरूप निगम ने कहा, “अगर इस प्रकार की कोई अनियमितता हुई है, तो इसकी निश्चित रूप से जांच की जाएगी।” वहीं, ‘ए. एस. मेडिकल एजेंसी’ के प्रमुख अनूप कुमार मंडल ने इस मामले पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया और फोन काट दिया।

अधिकारी के अनुसार, आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज के कुछ वरिष्ठ डॉक्टरों ने शिकायत की थी कि दवाओं की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी, और इन्हीं दवाओं के कारण इलाज में समस्याएं आ रही थीं। सरकारी एजेंसियों से उचित दरों पर दवाएं उपलब्ध होने के बावजूद निजी एजेंसी से भारी मात्रा में दवाओं की खरीद से अस्पताल की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।