-युद्ध स्तर पर जारी हल्दीघाटी मेगा हाई-वे का कार्य

-सुधिजनों ने भी कहा, मूल और मौजूदा दोनों दर्रे संरक्षित रहें

-मौजूदा पहाड़ी के बीच गुजरते 7 मीटर मार्ग को 14 मीटर करने का है प्रस्ताव

कौशल मूंदड़ा

उदयपुर, 3 दिसम्बर। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की सेना और मुगलों के बीच के ऐतिहासिक युद्ध की साक्षी हल्दीघाटी तक आवागमन को सहज बनाने के लिए मेगा हाई-वे परियोजना के तहत सड़क को चौड़ी करने का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। इस कार्य के बीच हल्दीघाटी दर्रे के अस्तित्व और संरक्षण को लेकर चिंता खड़ी हो गई है। इतिहासिवदों और महाराणा प्रताप के प्रति अटूट श्रद्धा रखने वालों ने हल्दीघाटी युद्ध के ऐतिहासिक दर्रे के संरक्षण को लेकर सरकार से इसकी योजना का खुलासा करने की आवश्यकता जताई है।

उल्लेखनीय है कि हल्दीघाटी मेगा हाई-वे परियोजना के तहत उदयपुर-हल्दीघाटी मार्ग पर लोसिंग से आगे कार्य नजर आना शुरू हो जाता है जो हल्दीघाटी दर्रे तक चल रहा है। वहीं, हल्दीघाटी दर्रे के आगे ओडण तक भी सड़क के लिए समतलीकरण का कार्य चल रहा है। फिलहाल हल्दीघाटी के संकड़े मार्ग जहां हल्दीघाटी का बोर्ड लगा है, उस दर्रे को यथावत रखा गया है।

सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में जिस कटी हुई पहाड़ी के बीच से गुजरती सड़क पर हल्दीघाटी का बोर्ड लगा है, उसकी मौजूदा चौड़ाई 7 मीटर है और उसे 14 मीटर करने का प्रस्ताव है, ताकि डबल लेन रोड बन सके। ग्रामीणों का कहना है कि सड़क चौड़ी हो जाने से यहां पर्यटकों के पगफेरे बढ़ेंगे और यहां विकास होगा। हालांकि, उनका मानना है कि जिस दर्रे को देखने लोग यहां आते हैं, उसके संरक्षण के बारे में सरकार ने भले ही कोई योजना सामने नहीं रखी है, लेकिन सरकार ने अच्छा ही सोचा होगा।

पहाड़ी के कट को ही मानते हैं दर्रा

-जानकारी के अनुसार सन 1967 में खमनोर से हल्दीघाटी तक सड़क का निर्माण राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा निजी कोष से कराया गया था। 1967 से पूर्व खमनोर से चेतक समाधि तक मात्र एक पगडंडी रही थी। कालांतर में 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी द्वारा उदयपुर से नाथद्वारा वाया हल्दीघाटी सड़क का निर्माण एक दशक तक चला था। पुनः 1997 में ऐतिहासिक दर्रे को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से पहाड़ी काट कर बायपास सड़क मार्ग बनाया गया। इसी बायपास को आज लोग हल्दीघाटी का दर्रा समझते हैं। इसका कारण यह भी है कि उस पहाड़ी से हल्दी के रंग की मिट्टी निकलती है और हल्दीघाटी का बोर्ड भी वहीं लगा है। इतिहासविद कहते हैं कि मूल दर्रा तो पर्यटकों और महाराणा प्रताप प्रेमियों की नजर से ही दूर है, जो हल्दीघाटी-खमनोर सड़क मार्ग के बायीं ओर स्थित है।

इतिहासविदों की चिंता

-इतिहास संकलन समिति उदयपुर के जिलाध्यक्ष डॉ. जीवन सिंह खरकवाल कहते हैं कि जहां तक मूल दर्रे की बात है, उसके संरक्षण की आवश्यकता है। उसका विकास इस तरह किया जाए कि पर्यटक और महाराणा प्रताप के प्रति श्रद्धा रखने वाले उसके मूल स्वरूप को देख सकें। अभी तो मौजूदा पहाड़ी से गुजरते मार्ग को लोग हल्दीघाटी की नजर से देखते हैं और इसी माटी का तिलक करते हैं। इसी मार्ग से गुजरने पर दर्रे का अहसास भी होता है। बरसों से लोगों की भावनाएं इस मार्ग से जुड़ी हैं, इस पहाड़ी को भी जहां तक हो सके बचाना चाहिए। जहां लोगों की भावनाओं का प्रश्न आता है, वहां सरकार को उसी नजरिये से विकास की योजना बनानी चाहिए।

-राजसमंद के इतिहासविद डॉ. गोविन्द सिंह सोलंकी कहते हैं, मेवाड़ के रणबांकुरों ने इसी जगह मुगल आक्रांताओं के दांत खट्टे किए थे। इसका ऐतिहासिक महत्व है। हल्दीघाटी दर्रे को सुरक्षित रखते हुए सड़क निर्माण किया जाना चाहिए। मूल दर्रा तो बरसों से पर्यटकों की नजर से दूर है। उसे पर्यटकों की आवाजाही के लिए विकसित किया जाना चाहिए और मौजूदा जिस मार्ग को हल्दीघाटी मार्ग माना जा रहा है, उससे भी जनभावनाएं जुड़ी हैं।

विधायक को सौंप चुके हैं पत्र

-हल्दीघाटी पर्यटन समिति के कमल किशोर पालीवाल ने बताया कि गत 24 सितम्बर 2024 को नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ को पत्र सौंपकर हल्दीघाटी के मूल स्थलों के साथ छेड़छाड़ रोकने व उनका संरक्षण करने के लिए ठोस कदम उठाने के लिए आग्रह किया गया था।