नई दिल्ली, 22 दिसंबर। भारत में श्रीलंका के तमिलों के अधिकारों की आवाज उठाने वाली हिंदू संघर्ष समिति ने श्रीलंका के बौद्ध संगठन ‘एसबीएसएल’ और जीटीएफ ( ग्लोबल तमिल फोरम) के बीच हिमालय डेकलरेशन के नाम से हुए समझौते को मानने से इनकार कर दिया है। समिति ने इस समझौते की कड़ी निंदा करते हुए इसे एकतरफा और अव्यावहारिक बताया है। समिति का कहना है कि हिमालय डेकलरेशन में युद्ध के बाद बदतर जिंदगी जीने वाले तमिल हिंदुओं के दमन और उनकी समस्या का कोई स्थाई हल नहीं बताया गया है।
हिंदू संघर्ष समिति के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण उपाध्याय ने कहा है कि बौद्ध संगठन के नेताओं को लोग यह जानते ही नहीं है कि श्रीलंका में तमिल किन परिस्थितियों में रह रहे हैं, क्योंकि संघ के लोग खुद तो वहां के सिंहली के बीच में रहते हैं, नेताओं को तमिलों के छीन लिए अधिकारों के बारे में कुछ पता ही नहीं हैं। हिंदू संघर्ष समिति ने हाल ही में श्रीलंका के तमिल नेताओं के प्रतिनिधिमंडल को दिल्ली बुलाकर उनके ताजा हालत के बारे में भारत सरकार के प्रीतिनिधियों और नागरिक संगठनों को जानकारी दी थी।
उपाध्याय ने कहा कि हिमालय डेकलरेशन में कहा गया है कि एसबीएसएल यह कोशिश करेगी कि दशकों से अशांत श्रीलंका के तमिल क्षेत्र में सुलह हो और एक शांतिपूर्ण समृद्ध श्रीलंका के लिए सभी लोग बिना किसी भय और संदेह के, समान अधिकारों के साथ रह सकें। ग्लोबल तमिल फोरम भी सशस्त्र संघर्ष की समाप्ति के बाद की स्थिति की बहाली की बात कर रहा है। दोनों पक्ष इसे राजनीतिक समझौता बता रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि युद्ध समाप्ति के बाद भी तमिलों की स्थिति वैसे ही बनी हुई है। अभी भी तमिल इलाके में श्रीलंका की आर्मी चप्पे-चप्पे पर तैनात है। 14 साल बीत जाने के बाद भी तमिलों को स्वशासन और आत्म निर्णय का अधिकार नहीं दिया गया है। तमिलों की जमीन पर कब्जे हो रहे हैं। मंदिर तोड़े जा रहे हैं। हिंदू संघर्ष समिति ने मांग की है कि श्रीलंका सरकार तमिल इलाके में सिंहलियों को बसाने और तमिलों की नस्ल खत्म करने की कार्रवाई रोके। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगरानी में तमिल प्रांतों में चुनाव कराए जाएं। तमिल समस्या का राजनीतिक हल निकाला जाए और चीन को उत्तरी क्षेत्र सौंपने से बाज आया जाए।