
कोलकाता, 28 मई। हंसखाली पॉक्सो मामले में गिरफ्तारी और प्राथमिकी दर्ज करने की प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स के उल्लंघन को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने जांच में लापरवाही बरतने के लिए संबंधित जांच अधिकारी के खिलाफ रुल जारी करते हुए विभागीय जांच और कार्रवाई का आदेश दिया है।
यह मामला वर्ष 2022 की एक घटना से जुड़ा है, जिसमें एक नाबालक और नाबालिका के बीच यौन संबंध का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। हालांकि, इस मामले में एफआईआर करीब दो साल बाद, अगस्त 2024 में दर्ज की गई, जब नाबालिका के परिवार ने हंसखाली थाने में शिकायत की। इसके आधार पर पुलिस ने उस किशोर को गिरफ्तार किया, जो घटना के वक्त नाबालक था, लेकिन एफआईआर दर्ज होने के वक्त वह बालिग हो चुका था। इसके बावजूद पुलिस ने उसे बालिग मानकर गिरफ्तारी की।
गिरफ्तारी की वैधता और एफआईआर की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए आरोपित के परिवार ने मई 2025 में हाई कोर्ट का रुख किया। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विभास पटनायक ने पाया कि गिरफ्तारी के दौरान सुप्रीम कोर्ट की तय गाइडलाइन्स का पालन नहीं किया गया। कोर्ट ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि पॉक्सो जैसे गंभीर मामलों में भी पुलिस यदि नियमों की अनदेखी करेगी तो यह कानून के दुरुपयोग का बड़ा खतरा पैदा करता है।
कोर्ट ने हंसखाली थाने के तत्कालीन जांच अधिकारी दीपक कुमार मालाकार के खिलाफ रुल जारी किया और नदिया ज़िले के पुलिस अधीक्षक को विभागीय जांच कर कार्रवाई सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। इस आदेश के पालन के लिए समयसीमा भी तय की गई है।
सुनवाई के दौरान, आरोपित किशोर के वकीलों अनिर्बाण ताराफदार और सौम्य भट्टाचार्य ने दलील दी कि नाबालिका द्वारा लगाए गए आरोप निराधार हैं और जिस समय घटना हुई, उस वक्त अभियुक्त नाबालक था, जिसकी उपेक्षा कर गिरफ्तारी की गई। उन्होंने यह भी बताया कि गिरफ्तारी के समय आवश्यक प्रक्रियाएं — जैसे गिरफ्तारी का आधार बताना, गवाह की उपस्थिति में कार्रवाई —का पालन नहीं किया गया।
इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नियमों का उल्लंघन स्वीकार नहीं किया जा सकता, भले ही संबंधित अधिकारी ने कोर्ट में गलती स्वीकार कर माफ़ी मांगी हो।
कोर्ट ने इस मामले को पूरे राज्य की पुलिस के लिए एक उदाहरण बताते हुए कहा है कि पॉक्सो जैसे मामलों में अत्यंत सावधानी और कानून के अनुपालन की आवश्यकता है। अदालत के इस आदेश को राज्य पुलिस व्यवस्था में जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।