ओंकार समाचार

रांची , 2 अगस्‍त झारखंड के कोल्हान प्रमंडल से निकलकर राज्य की राजनीति में अहम मुकाम तक पहुंचने वाले रामदास सोरेन का जीवन बेहद दिलचस्प रहा है।

संथाल समाज से आने वाले रामदास सोरेन का जन्म पूर्वी सिंहभूम जिले के एक साधारण आदिवासी परिवार में हुआ था।

किशोरावस्था से ही वे झारखंड अलग राज्य आंदोलन से जुड़ गए थे। शिबू सोरेन और चंपई सोरेन जैसे दिग्गज नेताओं के साथ उन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। इस संघर्ष के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। लेकिन जनता के बीच उनकी पहचान ‘धरतीपुत्र’ के रूप में मजबूत होती गई।

राजनीतिक यात्रा की शुरुआत
रामदास सोरेन ने 2009 में घाटशिला विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर पहली बार विधानसभा में प्रवेश किया। हालांकि 2014 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

निरंतर जनता के बीच सक्रिय रहे और 2019 में एक बार फिर जीत दर्ज कर अपने जनाधार को और मजबूत किया। पार्टी में वे झामुमो के भरोसेमंद और पुराने सिपाही के रूप में जाने जाते हैं।

नेतृत्व में नई भूमिका
साल 2024 उनके राजनीतिक जीवन में एक निर्णायक मोड़ लेकर आया। जब झामुमो के वरिष्ठ नेता और मंत्री चंपई सोरेन ने पार्टी और सरकार से इस्तीफा दिया, तो नेतृत्व को एक मजबूत और विश्वसनीय विकल्प की तलाश थी। तब पार्टी की नजरें रामदास सोरेन पर जाकर ठहरीं। अगस्त 2024 में मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के इस्तीफे के बाद हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी नई सरकार में रामदास सोरेन को कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। उन्हें उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और जल संसाधन जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई।

नवंबर 2024 में हुए विधानसभा चुनाव में रामदास सोरेन ने घाटशिला सीट से भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल सोरेन को 20,000 से अधिक मतों से हराकर शानदार जीत दर्ज की।

इस विजय के बाद हेमंत सोरेन कैबिनेट में उन्हें स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग का मंत्री नियुक्त किया गया।
आंदोलन की गलियों से होते हुए सरकार के गलियारों तक पहुंचने वाले रामदास सोरेन का सफर असाधारण है।