राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार
कलेक्टर-एसपी सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारियों व प्रबुद्धजनों ने दी श्रद्धांजलि
उदयपुर, 24 जनवरी। स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान देने वाले उदयपुर निवासी वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी मनोहर लाल औदिच्य का मंगलवार को देर रात्रि में देहावसान हो गया। वे करीब 99 वर्ष के थे। बुधवार को उदयपुर स्थित अशोक नगर मोक्षधाम पर उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल, पुलिस अधीक्षक डॉ भुवन भूषण यादव सहित अन्य ने पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
औदिच्य की अंतिम यात्रा बुधवार दोपहर उनके निवास से प्रारंभ हुई। इससे पूर्व सहस्त्र औदिच्य समाज की अध्यक्ष इंदिरा शर्मा के नेतृत्व में कार्यकारिणी उपाध्यक्ष दिनेश दवे, दिलीप व्यास, महासचिव राहुल व्यास, पूर्व अध्यक्ष लोकेश द्विवेदी, जेपी शर्मा, राकेश व्यास, किशन व्यास, मनीष दवे, सुनील दवे गोपाल व्यास, प्रमोद शर्मा, अमूल दवे आदि ने शॉल ओढ़ा, पगड़ी पहनाकर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में परिजन, समाजजन, शहर के प्रबुद्ध नागरिक शामिल हुए।
अशोकनगर मोक्षधाम पर उनकी पार्थिव देह पर तिरंगा ओढ़ाया गया। जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल, एसपी डॉ भुवन भूषण यादव, एडीएम सिटी राजीव द्विवेदी, एएसपी शिप्रा राजावत, उप महापौर पारस सिंघवी, समाजसेवी रवीन्द्र श्रीमाली सहित अन्य अधिकारियों व प्रबुद्धजनों ने पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। पुलिस जवानों ने मातमी धुन के साथ अंतिम सलामी देते हुए हवाई फायर किए। इसके पश्चात पुलिस जवानों ने ससम्मान तिरंगा ध्वज समेटा।
औदिच्य के तीनों पुत्रों डॉ प्रहलाद शर्मा, डॉ प्रकाश शर्मा एवं चंद्र प्रकाश सहित पौत्र, पौत्री, दौहित्र, दौहित्री एवं परिवारजनों ने मुखाग्नि दी।
स्वतंत्रता सेनानी मनोहर लाल औदिच्य : एक परिचय
स्वतंत्रता सेनानी मनोहरलाल औदिच्य का जन्म विक्रम संवत् 1982 की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तद्नुसार 10 जून 1925 को गरबा का चौक, बाईजीराज की ब्रह्मपुरी, उदयपुर में हुआ। उनके पिताश्री स्व. गणपत लाल एवं मातृश्री स्व. श्रीमती जशोदा देवी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उन्होंने बचपन से ही बालक मनोहर को अच्छे संस्कार तथा स्वाभिमान के जीवन जीने की शिक्षा दी। प्रारंभिक शिक्षा उदयपुर में प्राप्त करने के बाद मनोहर लाल औदिच्य ने सन् 1946 में आगरा विश्वविद्यालय से कला स्नातक (बी.ए.) एवं 1948 में राजपूताना विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की उपाधि प्राप्त की। औदिच्य अपने छात्र जीवन से ही भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गए थे। सन् 1942 में अंग्रेजों के विरुद्ध भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने विद्यार्थियों का नेतृत्व किया। उसी दौरान डिफेन्स ऑफ इंडिया रूल धारा 26 के अन्तर्गत 22 अगस्त 1942 को उन्हें अनिश्चित काल के लिए कारागर में बन्दी बना लिया गया। इस घटना के बाद पूरे मेवाड़ में आंदोलन उफान पर आ गया। विद्यार्थियों को बंदी बनाए जाने से आक्रोश भड़कने लगा। इस पर सरकार ने 2 सितम्बर 1942 को बिना शर्त के रिहा किया। उसके उपरान्त भी वे आन्दोलन में सक्रिय रहे। औदिच्य को राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती समारोह व अनेक अन्य अवसरों पर स्मृति चिह्न, ताम्रपत्र, शॉल आदि भेंट कर भी सम्मानित किया गया है। युवा अवस्था में ही पिताश्री का स्वर्गवास होने से उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी भी बड़ी हिम्मत से निर्वाह की। आजादी के बाद उन्होंने राजस्थान सरकार के सार्वजनिक निर्माण विभाग में अपनी सेवाएं दीं। वे कर्त्तव्य परायणता एवं ईमानदारी के मिसाल रहे। सन् 1980 में विभाग के कार्यालय अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए।
सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी विभाग एवं समाज को हर तरह से सेवा देते रहे। जीवन के उत्तरार्ध में वे पूजापाठ, धार्मिक पुस्तकें पढ़ने एवं समाज के लोगों से विभिन्न विषयों पर चर्चाओं में समय व्यतीत करते थे। औदिच्य का विवाह गोकुल मथुरा निवासी स्व. मुखिया प्रेम शंकर द्विवेदी एवं स्व. श्रीमती चन्द्रावती की सुपुत्री स्व. श्रीमती कान्तादेवी के साथ हुआ। औदिच्य के तीन पुत्र-पुत्रवधु, एक पुत्री-दामाद सहित पौत्र-पौत्रियों का भरा पूरा परिवार है।