
कच्छ की निजी कंपनी को नियम विरुद्ध जमीन आवंटन मामले में फैसला
सीबी केस की सजा काटने के बाद दूसरी सजा को भुगतना होगा
भुज, 19 अप्रैल । कच्छ के तत्कालीन कलक्टर प्रदीप शर्मा समेत 4 अधिकारियों को भुज की अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जेवी बुद्धा की अदालत ने शनिवार को 5 साल की कैद और 10 हजार रुपये के जुर्माना की सजा सुनाई है। यह मामला सरकारी जमीन को एक निजी कंपनी को अनियमित रूप से आवंटित करने से संबंधित है, जिसके कारण सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। शर्मा ने राज्य सरकार के नियमों का उल्लंघन करते हुए सॉ पाइप्स प्राइवेट लिमिटेड को औद्योगिक इकाई स्थापित करने के लिए जमीन आवंटित की, जिससे सरकारी खजाने को वित्तीय नुकसान हुआ। जमीन का आवंटन 2 हेक्टेयर की सीमा से अधिक था, जिससे 6 जून, 2003 के गुजरात सरकार के राजस्व विभाग के प्रस्ताव का उल्लंघन हुआ।
यह मामला 2004 में सॉ पाइप्स प्राइवेट लिमिटेड को सरकारी जमीन के अनियमित आवंटन से जुड़ा है, जब शर्मा कच्छ के कलेक्टर थे। निजी कंपनी को कच्छ जिले की मुंद्रा तहसील के समाघोघा में सरकारी जमीन आवंटन में नियमों का उल्लंघन किया गया था। अदालत ने कहा कि शर्मा की यह सजा अहमदाबाद की सत्र अदालत द्वारा 20 जनवरी को 2004 के एक अन्य भ्रष्टाचार मामले में दी गई पांच साल की सजा पूरी होने के बाद शुरू होगी। 2011 में शर्मा और तीन अन्य के खिलाफ सीआईडी क्राइम राजकोट जोन पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 120बी और 217 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसी मामले में शर्मा को 4 मार्च, 2011 को गिरफ्तार किया गया था। सरकार के परिपत्र के अनुसार कलक्टर को महज 2 हेक्टेयर जमीन आवंटन का अधिकार था, लेकिन प्रदीप शर्मा ने 47,173 वर्ग मीटर जमीन मंजूर किया था। कोर्ट ने इसी मामले में शर्मा को सजा सुनाई है।
करीब 15 साल पुराने इस केस में एक ही दिन, एक ही कंपनी, एक ही उद्देश्य से 3 अलग-अलग सर्वे नंबर की जमीन के लिए आवेदन किया गया था। नियम के अनुसार ऐसे सभी आवेदन को एक साथ करके एक ही आदेश से निर्णय करना जरूरी होता है। कलक्टर ने इस नियम की अवहेलना करते हुए सर्वे नंबर 326 में 20538 वर्ग मीटर जमीन आवंटित की गई, जो 20 हजार वर्ग मीटर की तय सीमा से अधिक थी। इसके बाद 25 अप्रैल, 2004 को कुल 47,173 वर्ग मीटर जमीन एक ही कंपनी को दी गई। इस तरह 37,173 वर्ग मीटर जमीन अधिक आवंटित की गई। इस केस के अन्य आरोपियों में तत्कालीन नगर नियोजक नटू देसाई, उप तहसीलदार नरेन्द्र प्रजापति और रेसिडेंट डिप्टी कलक्टर अजीत सिंह झाला का शामिल था।
सीआईडी क्राइम राजकोट जोन ने इस केस को आईपीसी की धारा 217, 409 और 120 (बी) के तहत दर्ज कर जांच शुरू की थी। इस केस में अभियोजन की ओर से 52 दस्तावेजी सबूत, 18 साक्षी प्रस्तुत किए गए। इसमें सभी आरोपियों को आईपीसी की धारा 409-120 (बी) के तहत अपराध में कसूरवार ठहराते हुए 5 साल की सख्त कैद और 10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई। इसके अलावा आईपीसी की धारा 217 के तहत कसूरवार ठहराते हुए 3 महीने की सादी कैद की सजा सुनाई गई।