
-राज्य सरकार के कृषि विभाग की खराब योजना और झीलों में जलस्तर गिरने के कारण किसान हैं परेशान
हैदराबाद, 14 मार्च । केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बंडी संजय कुमार ने कहा कि राज्यभर में 56 लाख एकड़ में धान और 7 लाख एकड़ में मक्का की खेती होने के बावजूद समय पर सिंचाई का पानी न छोड़ने के कारण पहले ही लगभग 10 लाख एकड़ की फसल बर्बाद हो चुकी है। विशेष रूप से सिंचाई प्रणाली में खामी के कारण अंतिम छोर पर स्थित फसलें पूरी तरह से पानी नही मिलने से सूख गई हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार की मशीनरी किसानों को सहायता देने और फसलों की रक्षा करने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बंडी कुमार ने एक प्रेस विज्ञप्ति में राज्य सरकार की इस लापरवाही पर सीधा निशाना साधा है। उन्हाेंने कहा कि इस वर्ष अच्छी वर्षा हुई थी, जिससे जलाशय और झीलें भर गई थीं। इसके परिणामस्वरूप मानसून के दौरान रिकॉर्ड 160 लाख मीट्रिक टन धान की पैदावार हुई। जल उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए रबी सीजन में 56 लाख एकड़ में धान और 7 लाख एकड़ में मक्का की बुवाई की गई। इसके अलावा ज्वार, दालें और तिलहन भी उगाई गईं। बुवाई के समय राज्य सरकार ने कोई आपत्ति नहीं जताई और कृषि विभाग ने भी वैकल्पिक फसल योजना लागू करने में विफलता दिखाई। अब जबकि फसल कटाई में केवल एक महीना बचा है, लाखों एकड़ की फसलें सिंचाई के लिए पानी न मिलने से सूख रही हैं। झीलों में जलस्तर गिरने के कारण भूजल स्तर भी नीचे चला गया है, जिससे बोरवेल और कुओं के समीप की फसलें भी नष्ट हो रही हैं।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने कहा कि यह निश्चित रूप से राज्य सरकार की विफलता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, श्रीशैलम, नागार्जुन सागर, श्रीराम सागर, येलमपल्ली, एलएमडी और सिंगूर जैसे प्रमुख जलाशयों में अब भी 340 टीएमसी से अधिक पानी उपलब्ध है। यदि मृत जल संग्रहण (डेड स्टोरेज) के 150 टीएमसी को छोड़ भी दें तो, भी 190 टीएमसी से अधिक पानी मौजूद है। यदि पेयजल की आवश्यकता को छोड़कर शेष पानी समय पर छोड़ा जाता और जलाशयों को भरा जाता तो, इस संकट से बचा जा सकता था। लेकिन सरकार की लापरवाही और कृषि विभाग की खराब योजना के कारण पर्याप्त पानी उपलब्ध होने के बावजूद 10 लाख एकड़ की फसलें सूख गई हैं।
उन्हाेंने कहा कि किसानों ने प्रति एकड़ 30,000 रुपये से अधिक का निवेश किया और महीनों तक मेहनत की, लेकिन अब फसल कटने से पहले ही सूख गई हैं। यह किसानों के मुंह से निवाला छीनने जैसा है। किसान अपनी सूख चुकी फसल को मवेशियों को खिला रहे हैं या जला रहे हैं, लेकिन फिर भी कृषि विभाग चुप्पी साधे हुए है और उनके नुकसान को स्वीकार तक नहीं कर रहा है। सरकार की लापरवाही का बोझ किसानों को क्यों उठाना चाहिए?
उन्हाेंने कहा कि “रायतु भरोसा” योजना की विफलता के कारण किसान पहले से ही परेशान हैं। 20 लाख से अधिक किसान अधूरे ऋण माफी योजना के कारण कर्ज में डूबे हुए हैं। पिछली बार जिन किसानों की फसलें नष्ट हुई थीं, उन्हें मुआवजा तक नहीं मिला और वे अब भी संकट झेल रहे हैं। “किसान कल्याण” का दावा करने वाली कांग्रेस सरकार इस संकट का क्या जवाब देगी? क्या यही कांग्रेस सरकार की किसान हितैषी नीति है?
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने कहा कि यह शर्मनाक है कि कांग्रेस सरकार किसानों की समस्याओं पर विधानसभा में चर्चा तक करने को तैयार नहीं है। राज्य और देश के लिए अन्न उगाने वाले किसान परेशान हैं, आत्महत्या कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनके मुद्दों पर विचार करने और समाधान निकालने के बजाय चुप बैठी है। राज्य सरकार को केंद्र सरकार पर दोष मढ़ने के बजाय अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। उन्हाेंने कहा कि मुख्यमंत्री को राजनीतिक नेताओं की कद-काठी पर चर्चा करने के बजाय किसानों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए और उनके साथ खड़ा होना चाहिए। हम मांग करते हैं कि राज्य सरकार तत्काल विधानसभा में किसानों के संकट पर चर्चा करे, राहत उपायों की घोषणा करे और जलाशयों से पानी छोड़ने का निर्णय ले, ताकि किसानों को और अधिक नुकसान से बचाया जा सके।