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कोलकाता, 3 दिसंबर । पश्चिम बंगाल मेडिकल काउंसिल कार्यालय के सामने सोमवार रात से डॉक्टरों के एक समूह ने धरना शुरू किया, जो मंगलवार सुबह तक जारी रहा। इस दौरान पुलिस के साथ उनकी तीखी बहस भी हुई। प्रदर्शनकारी डॉक्टरों ने काउंसिल के हालिया फैसले का विरोध करते हुए कार्यालय के बाहर डेरा डाल रखा है।
मामला काउंसिल के उन दो सदस्यों, अभीक दे और बिरुपाक्ष विश्वास, से जुड़ा है, जिन्हें सरकारी अस्पताल में कथित ‘दादागीरी’ और विवादों के कारण पहले निलंबित कर दिया गया था। सोमवार को काउंसिल ने उनके निलंबन को रद्द कर दिया और बैठक में शामिल होने की अनुमति दी। इसके खिलाफ ‘ज्वाइंट प्लेटफॉर्म ऑफ डॉक्टर्स’ और ‘वेस्ट बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट’ के सदस्य प्रदर्शन कर रहे हैं।
धरना स्थल पर मौजूद वरिष्ठ डॉक्टरों का कहना है कि अभीक और बिरुपाक्ष के खिलाफ पहले उठाए गए कदम को यदि वैध ठहराया गया था, तो अब इसे क्यों रद्द किया गया? प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि यह फैसला आंदोलन को कमजोर करने और डॉक्टरों को डराने के लिए लिया गया है।
मंगलवार सुबह पुलिस ने प्रदर्शनकारियों का तंबू हटाने की कोशिश की, जिससे विवाद बढ़ गया। पुलिस का कहना है कि उनके काम में बाधा दी जा रही है, जबकि प्रदर्शनकारी डॉक्टरों का कहना है कि अभीक और बिरुपाक्ष के कार्यालय में प्रवेश को रोकने के लिए उनका धरना जारी रहेगा। दोनों पक्षों के बीच बहस के बाद भी डॉक्टरों को वहां से हटाया नहीं जा सका।
यह विवाद आरजी कर मेडिकल कॉलेज में नौ अगस्त को एक मेडिकल छात्रा की दुष्कर्म के बाद हत्या से शुरू हुआ था। इस मामले में अभीक दे और बिरुपाक्ष विश्वास के नाम सामने आए थे। उन पर सरकारी अस्पताल में दबदबा बनाने और गलत तरीके से लाभ उठाने के आरोप लगे थे। इस मामले में सीबीआई ने दोनों से पूछताछ की थी, और राज्य मेडिकल काउंसिल ने उनके खिलाफ कार्रवाई की थी।हालांकि, अब काउंसिल ने कहा है कि उस समय का फैसला परिस्थितियों के आधार पर लिया गया था, लेकिन अब इसे रद्द कर दिया गया है। इस फैसले ने विवाद को और गहरा दिया है, जिससे डॉक्टरों का गुस्सा भड़क उठा है। प्रदर्शनकारी डॉक्टरों का कहना है कि यह फैसला उनकी मांगों और आंदोलन को नजरअंदाज करने का संकेत है।
धरना स्थल पर मौजूद जूनियर डॉक्टर देवाशीष हलदर ने कहा कि यह फैसला आंदोलन को दबाने और डराने की रणनीति का हिस्सा है। डॉक्टरों ने साफ किया है कि उनका विरोध तब तक जारी रहेगा जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं की जातीं।