नई दिल्ली, 01 जुलाई । गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ एंड लीगल स्टडीज़ द्वारा आज से लागू तीन आपराधिक कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया।
इस परिचर्चा की शुरुआत करते हुए यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो.(डॉक्टर) महेश वर्मा ने इसे सरकार का एक युगांतकारी कदम बताया। उन्होंने कहा कि ये तीनों कानून अब पूरी तरह देशी स्वरूप में ढल गए हैं और एक सार्थक, संवेदनशील और न्यायसंगत समाज का निर्माण करने में सहायक होंगे।
उन्होंने कहा कि इन तीनों कानूनों को लेकर लोगों को जागरूक करने की ज़रूरत है और इसे क्रियान्वित करने वाले लोगों को प्रशिक्षित करने की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में विश्वविद्यालय एक बड़ी भूमिका निभा सकता है।
उन्होंने कहा कि इन नए कानूनों में ‘दंड’ की जगह ‘न्याय’ शब्द का प्रयोग किया गया है और छोटे अपराधों के लिए सजा के रूप में कुछ सामुदायिक कार्य को भी शामिल किया गया है। अंत में उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था में यह एक अभूतपूर्व बदलाव है जिसका फ़ायदा समाज के हर वर्ग को मिलेगा।
पूर्व ज़िला सत्र न्यायाधीश एचएस शर्मा ने बताया कि इन कानूनों में हुए बदलावों की सबसे खास बात यह है कि न्याय पाने वालों पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया है। उनकी फरियाद को हर स्तर पर गौर से सुना जाए, उसका पूरा प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के विशेष सचिव प्रवीण सिंह ने इस अवसर पर कहा कि इन कानूनों में हुए बदलाव काफी प्रगतिवादी हैं और नागरिकों के हितों पर केंद्रित हैं। कुछ समय बाद इनके फ़ायदे परिलक्षित होंगे।
उन्होंने बताया कि कई पुराने प्रावधानों को हटा दिया गया है और आज की परिस्थितियों की आवश्यकता अनुसार नए प्रावधानों को जोड़ा गया है। उन्होंने यह भी बताया कि इन बदलावों में महिलाओं की गरिमा और आत्मसम्मान के साथ-साथ बच्चों के अधिकारों का ख़ास ख़याल रखा गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस तलवंत सिंह ने कहा कि नए बदलाव में डिजिटल एविडेन्स पर काफ़ी ज़ोर दिया गया है। इससे न्यायिक प्रक्रिया में डिजिटल दख़ल बढ़ेगी और फ़ोरेंसिक साइन्स के पेशेवरों की मांग बढ़ेगी। उन्होंने यह भी कहा कि न्याय प्रक्रिया की समय सीमा तय होने से क़ानूनी लाभ ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचेगा।

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एमएल मेहता ने कहा कि बिना अच्छी तरह पढ़े और समझे इन नए क़ानूनों का विरोध ठीक नहीं है। इन क़ानूनों में लाए बदलाव लोगों के हितों को ध्यान में रख कर किए गए हैं। उन्होंने कहा कि नए बदलाव से न्याय प्रक्रिया में तेज़ी आएगी और सामान्य आदमी तक न्याय की पहुंच बढ़ेगी।