
कोलकाता, 31 मई ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अलीपुरदुआर रैली में आमंत्रण नहीं मिलने के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कोलकाता रैली में भी दिलीप घोष को नहीं बुलाया गया है। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद घोष को आमंत्रण न मिलने को लेकर भाजपा के भीतर चर्चा तेज है।
शनिवार सुबह दिलीप घोष ने खुद स्वीकार किया कि उन्हें कोई निमंत्रण नहीं मिला है। उन्होंने कहा, “मैं किसी पद पर नहीं हूं। नेताजी इंडोर स्टेडियम में अलग-अलग स्तर के पदाधिकारियों को बुलाया गया है। इसलिए शायद मुझे नहीं बुलाया गया।” हालांकि, घोष भाजपा की राज्य कोर कमेटी के सदस्य हैं और राज्य कमेटी में भी उनका स्थान है, ऐसे में नियमों के अनुसार उन्हें बुलाया जाना चाहिए था।
दूसरी ओर, भाजपा के कई राज्य स्तरीय नेता और साधारण सदस्य भी शाह की रैली में शामिल हो रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, मंडल अध्यक्ष से लेकर वरिष्ठ पदाधिकारियों तक सभी को पार्टी दफ्तर से व्यक्तिगत रूप से बुलाया गया है। बावजूद इसके, दिलीप घोष को अब तक आमंत्रण नहीं मिला है।
इससे पहले, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथागत रॉय ने भी रैली का आमंत्रण न मिलने की पुष्टि की थी लेकिन उन्होंने अपनी उम्र—75 वर्ष—को वजह बताया। जबकि दिलीप घोष की उम्र 75 से काफी कम है, और वे पार्टी में सक्रिय भी हैं।
भाजपा के एक धड़े का मानना है कि दिलीप घोष की दूरी की वजह उनके हालिया विवादास्पद बयान हैं। खासकर, जब उन्होंने दीघा में जगन्नाथ मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की खुलकर तारीफ की थी। घोष ने कहा था, “ममता बनर्जी ने जगन्नाथ मंदिर बनाकर हिन्दू जागरण का काम किया है।” बाद में एक टेलीविजन इंटरव्यू में उन्होंने ममता को भ्रष्टाचार के मामलों में ‘क्लीन चिट’ दी थी और उन्हें सांप्रदायिक हिंसा से भी अलग बताया था। इन बयानों के बाद पार्टी नेतृत्व खासा नाराज है।
दिलीप घोष को लेकर पार्टी के भीतर असमंजस का माहौल है। एक वर्ग का कहना है कि नेताजी इंडोर जैसी बड़ी सभा में अगर किसी कार्यकर्ता ने उन्हें लेकर नाराज़गी जाहिर कर दी, तो पार्टी की छवि को नुकसान हो सकता है। इसी वजह से उनके सम्मान की रक्षा के नाम पर उन्हें कार्यक्रम से दूर रखा जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि दीघा से कोलकाता लौटते समय कोलाघाट में घोष का चाय-चर्चा कार्यक्रम भाजपा कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण रद्द करना पड़ा था। इसके बाद से घोष के सुर और तीखे हो गए हैं।
राज्य भाजपा नेतृत्व दिलीप घोष पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी करने से बच रहा है, लेकिन उनके लगातार अलग-थलग पड़ने के संकेत साफ हैं। यह देखना अब अहम होगा कि आगामी दिनों में पार्टी उनके प्रति क्या रुख अपनाती है।