कोलकाता, 06 जुलाई । पश्चिम बंगाल सरकार राज्य के कर्मचारियों को 25 प्रतिशत महंगाई भत्ते की बकाया राशि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 27 जून की समयसीमा तक देने में विफल रही है। इस देरी को लेकर आर्थिक विशेषज्ञों और प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि इसके मूल में पारदर्शी नीति और आवश्यक आंकड़ों की गंभीर कमी है।

आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य सरकार अब तक महंगाई भत्ता की गणना के लिए कोई स्पष्ट और मानकीकृत फॉर्मूला नहीं अपना सकी है। केंद्र सरकार और अधिकांश राज्य सरकारें जहां अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को आधार बनाकर महंगाई भत्ता की दरें तय करती हैं, वहीं पश्चिम बंगाल सरकार अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सुचकांक को मान्यता देने से परहेज करती रही है। इसके चलते महंगाई भत्ता निर्धारण की प्रक्रिया लंबे समय से अस्पष्ट बनी हुई है।

फिलहाल राज्य सरकार के कर्मचारी जहां केवल 18 प्रतिशत महंगाई भत्ता पा रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार और कई अन्य राज्य सरकारों में यह दर 55 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। इस असमानता के चलते कर्मचारियों में असंतोष व्याप्त है, और राज्य सरकार के विरुद्ध कानूनी संघर्ष भी तेज हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि राज्य सरकार 25 प्रतिशत महंगाई भत्ता बकाया का भुगतान 27 जून की मध्यरात्रि तक सुनिश्चित करे। लेकिन समयसीमा समाप्त होने के बाद अब राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से छह माह का अतिरिक्त समय मांगा है।

इस पूरी प्रक्रिया में एक बड़ी समस्या यह भी रही कि राज्य सरकार यह स्पष्ट नहीं कर सकी कि इस आदेश से कितने कर्मचारी लाभान्वित होंगे, और उनकी श्रेणीवार स्थिति क्या होगी। इस आंकड़ों की अनुपस्थिति के चलते डीए भुगतान में अनुमानित व्यय राशि को लेकर भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। वित्त विभाग के भीतर ही दो भिन्न आकलन सामने आए हैं—एक अनुमान के अनुसार राशि 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक है, जबकि दूसरा अनुमान इसे 12 हजार करोड़ रुपये के करीब मानता है।

वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर भी सरकार की नीति पर सवाल उठे हैं। छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों को राज्य सरकार ने लंबे समय तक सार्वजनिक नहीं किया। इन्हें अंततः कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश के बाद जारी किया गया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वेतन आयोग के दस्तावेज गोपनीय श्रेणी में नहीं आते। अतः इन्हें छिपाना अनावश्यक है।

सरकार की ओर से इस गंभीर मुद्दे पर अब तक कोई ठोस सार्वजनिक वक्तव्य नहीं आया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केवल इतना कहा कि सरकार कानून के अनुसार कार्य करेगी। लेकिन महंगाई भत्ता भुगतान को लेकर बना यह विवाद अब प्रशासनिक सीमा से निकलकर एक संवेदनशील राजनीतिक विषय बन गया है, जिस पर सभी की निगाहें टिकी हैं।