
कोलकाता, 10 अप्रैल । पश्चिम बंगाल विधानसभा से पास हुए कई बिलों के राजभवन में अटकने को लेकर राज्य सरकार और विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी द्वारा बनाए गए दबाव के बीच, बुधवार देर रात राजभवन ने दो लिखित बयान जारी कर स्थिति स्पष्ट की। राजभवन ने कहा कि राज्यपाल संविधान के दायरे में रहकर और शिष्टाचार का पालन करते हुए कार्य कर रहे हैं।
ताजा विवाद की पृष्ठभूमि में, सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल को विधानसभा से पास बिलों को मंजूरी नहीं देने पर फटकार लगाई थी। इसके बाद पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा अध्यक्ष ने राज्यपाल पर परोक्ष दबाव बनाते हुए कहा कि 2016 से अब तक 23 बिल राजभवन में लंबित पड़े हैं। अध्यक्ष ने सुझाव दिया कि यदि बिलों में कोई त्रुटि हो, तो राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) की सलाह ले सकते हैं।
स्पीकर ने खासतौर पर जिन प्रमुख बिलों का उल्लेख किया, उनमें शामिल हैं —
मॉब लिंचिंग (सामूहिक पिटाई) रोकने से जुड़ा बिल,
हावड़ा और बाली नगरपालिका के विलय से संबंधित बिल,
मुख्यमंत्री को विभिन्न विश्वविद्यालयों का कुलपति (चांसलर) बनाने संबंधी आठ बिल,
और महत्वपूर्ण ‘अपराजिता’ बिल।
राजभवन द्वारा जारी बयान में किसी का नाम लिए बिना कहा गया है कि जिन बिलों के अटके होने की बात की जा रही है, उनके संबंध में पूर्ण और आवश्यक जानकारियां अब तक प्राप्त नहीं हुई हैं। बिना पूरी जानकारी के बिलों पर निर्णय लेना उचित नहीं होगा।
राजभवन ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान के प्रावधानों के अनुसार ही बिलों पर विचार किया जा रहा है। इस प्रकार, विधानसभा अध्यक्ष द्वारा बनाए जा रहे दबाव के जवाब में राजभवन ने परोक्ष रूप से नवान्न को ही जिम्मेदार ठहराया है।