रांची, 29 मई । आजसू पार्टी ने कहा है कि कांग्रेस और झामुमो पेसा कानून और सरना कोड के मुद्दे पर झारखंडी जनता को गुमराह करना बंद करे और बताए कि वर्ष 2014 में केंद्र की मनमोहन सरकार ने सरना कोड की मांग को खारिज क्यों किया था। आजसू ने कांग्रेस और झामुमो से पेसा कानून के संबंध में अपनी स्थिति और रुख स्पष्ट करने को कहा है।

आजसू पार्टी के मुख्य प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत और झारखंड आंदोलनकारी प्रवीण प्रभाकर ने पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में गुरुवार को संयुक्त रूप से कहा कि मौजूदा सरकार आदिवासियों के अधिकारों के साथ खिलवाड़ कर रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पेसा कानून को पूरी तरह लागू करने से कतरा रही है। आजसू पार्टी हमेशा से आदिवासियों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों के लिए संघर्ष करती रही है। आजसू पार्टी के संघर्ष की बदौलत झारखंड राज्य हासिल हुआ है। कांग्रेस–झामुमो ने तो वर्ष 1993 में झारखंड आंदोलन की सौदेबाजी कर ली थी और अलग राज्य का निर्माण टाल दिया गया था। वर्ष 1999 में आजसू ने तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ वार्ता कर झारखंड निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था।

मनमोहन सरकार ने कर दिया था खारिज

डॉ भगत ने कहा कि 2012 में मनमोहन सरकार ने लोकसभा में सरना कोड की मांग को गृह मंत्रालय के जरिए अव्यावहारिक बताते हुए खारिज कर दिया था। सरना कोड पर घड़ियाली आंसू बहानेवाले कांग्रेस–झामुमो बताएं कि इस 11 फरवरी 2014 को यूपीए के केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री वी किशोर चंद्रदेव ने आधिकारिक वक्तव्य में सरना कोड की मांग को खारिज क्यों किया था। केंद्रीय मंत्री ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट रूप से कहा था कि सरना कोड की मांग व्यवहारिक नहीं है। आजसू पार्टी सरना कोड के समर्थन में है, लेकिन कांग्रेस–झामुमो की दोहरी नीति का पर्दाफाश किया जाना जरूरी है।

प्रभाकर ने कहा कि सरना कोड आदिवासी समुदाय की भावना, पहचान और अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस और झामुमो ने इस मुद्दे को पहले अव्यावहारिक कहकर खारिज कर दिया था और अब राजनीतिक लाभ के लिए इसे उछाल रहे हैं। उन्होंने जानकारी दी कि वर्ष 1871 से लेकर 1951 तक की जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड था, लेकिन 1961 से इसे समाप्त कर दिया गया। इससे आदिवासी पहचान को कमजोर करने की कोशिश हुई।

पेसा कानून को लेकर संजय मेहता ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस कानून के पूरी तरह लागू होने से डरते हैं, क्योंकि इससे आदिवासी समाज को जल, जंगल और जमीन पर परंपरागत अधिकार मिलेंगे और सत्ता में बैठे लोगों की भ्रष्टाचार आधारित राजनीति उजागर हो जाएगी।

मौके पर मीडिया प्रभारी परवाज खान, केंद्रीय सचिव हरीश कुमार, युवा नेता संजय मेहता भी उपस्थित थे।