पहाड़ कटते रहे तो पड़ेगी रेगिस्तान जैसी गर्मी
उदयपुर 26 मई। झीलों की नगरी उदयपुर में रविवार को आयोजित झील संवाद में तीव्र व असहनीय गर्मी के कारणों व इस विभीषिका के नियंत्रण पर विचार विमर्श किया गया। संवाद का आयोजन झील संरक्षण समिति के तत्वावधान में हुआ।
संवाद में विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने कहा कि पहाड़ों को काट देने, छोटे तालाबों को नष्ट कर देने तथा कच्ची जमीन खत्म कर देने से शहर का तापक्रम निरंतर बढ़ रहा है।
मेहता ने कहा कि कहीं भी मिट्टी, कच्ची जमीन नही बचीं हैं। सब तरफ डामर , कंक्रीट , टाइलें, पक्का निर्माण है। ये पदार्थ बहुत मात्रा में सूर्य ताप को अवशोषित कर उसे अपने भीतर बनाए रखते है। इससे सतह और आसपास का तापमान बहुत बढ़ जाता है।
कच्ची जमीन पर घास व वनस्पति होते हैं जो वाष्पोत्सर्जन कर तापमान को कम करते है।मेहता ने कहा कि अरावली की पहाड़ियों ने रेगिस्तान को बढ़ने से रोक कर रखा है। यदि पहाड़ियों को कटना नही रोका गया तो रेगिस्तान जैसी भीषण गर्मी व पानी की कमी से जूझना पड़ेगा।
झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि पर्यटक वाहनों की बढ़ती संख्या शहर के वातावरण को खराब कर रही है। होटलों में निरंतर चलने वाले ए सी आसपास के क्षेत्रों में तापक्रम को और ज्यादा बढ़ा देते हैं। ऐसे में पर्यटन को संतुलित करने पर विचार करना आवश्यक हो गया हैं। पालीवाल ने कहा कि बढ़ती गर्मी से बीमारियों के बढने की भी पूरी आशंका हैं।
गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि शहर व आसपास के इलाकों में पेड़ों को कटाई ने वातावरण में गर्मी तीव्रता को बढ़ाया है। ऐसे में देशी प्रजातियों के वृक्षों का व्यापक स्तर पर रोपण करना होगा। शहर को कंक्रीट सिटी बनने से रोकना होगा तथा गार्डन सिटी स्वरूप को पुन: कायम करना होगा।
अभिनव संस्थान के निदेशक कुशल रावल ने कहा कि छोटे तालाबों में निर्माण हो जाने से वे नष्ट हो रहे हैं। जबकि ये छोटे जलस्रोत शहर के तापक्रम का अनुकूलन करते थे। यदि शहर को मौसमी दुष्प्रभावों से बचाना है तो छोटे तालाबों को अपने मूल स्वरूप मे लौटाना जरूरी है।
वरिष्ठ नागरिक रमेश चंद्र ने चिंता जताई कि गर्मी से पशु पक्षियों का जीवन भी संकट में पड़ गया है।
संवाद से पूर्व श्रमदान कर झील किनारों से कचरे को हटाया गया।