
कोलकाता, 02 अगस्त। पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय को साधने और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के ‘बंगाली अस्मिता’ यानी बंगाली गौरव की राजनीति को चुनौती देने के मकसद से भारतीय जनता पार्टी ने राज्य के कई हिस्सों में ‘सीएए सहायता शिविर’ शुरू कर दिए हैं। इन्हें ‘सीएए सहयोगिता शिविर’ नाम दिया गया है, जो सबसे पहले बागदा में शुरू किया गया और अब तेजी से बनगांव दक्षिण व उत्तर 24 परगना के अन्य मतुआ बहुल इलाकों में फैल रहे हैं।
बीजेपी इन शिविरों के माध्यम से ऐसे शरणार्थियों को नागरिकता आवेदन करने में मदद कर रही है, जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं। पार्टी का नारा है— “पहले आवेदन करें, बाद में सत्यापन होगा।”
राज्य बीजेपी अध्यक्ष शामिक भट्टाचार्य ने कहा, “सीएए उन हिंदू सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए है जो पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आए हैं। इसकी सुचारू प्रक्रिया हमारी जिम्मेदारी है। दस्तावेजी समस्याएं हैं, लेकिन उसका समाधान हम करेंगे। बीजेपी कार्यकर्ता हर शरणार्थी समाज के साथ खड़े रहेंगे।”
पार्टी कार्यकर्ता और मतुआ समुदाय के स्वयंसेवक ऑनलाइन फॉर्म भरने, शपथ-पत्र दिलाने और आवेदन की रसीद देने में मदद कर रहे हैं। इसके पीछे केवल एक संगठनात्मक अभियान नहीं, बल्कि राजनीतिक तौर पर भी बड़ी तैयारी दिखाई दे रही है। हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे में एक मतुआ परिवार को बांग्लादेशी कहकर हिरासत में लिया गया था, जबकि उनके पास पहचान पत्र और यहां तक कि केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर द्वारा हस्ताक्षरित अखिल भारतीय मटुआ महासंघ का कार्ड भी था।
मतुआ वोट को फिर से अपने पाले में लाने की रणनीति
बीजेपी अब इसे बंगाल के शरणार्थी समुदाय, विशेषकर मतुआ मतदाताओं का विश्वास फिर से जीतने का अवसर मान रही है। वर्ष 2024 में सीएए के नियम अधिसूचित होने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का अधिकार मिल गया है। लेकिन पहले कई लोगों ने दस्तावेजों के अभाव में आवेदन की प्रक्रिया बीच में छोड़ दी थी।
अब मतुआ महासंघ खुद इस अभियान में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है। महासंघ के महासचिव महितोष बैद्य ने कहा, “ये शिविर सिर्फ मतुआ क्षेत्रों में नहीं, पूरे बंगाल में आयोजित होंगे। हमारा लक्ष्य है कि अगले कुछ महीनों में 1.5 करोड़ लोगों तक पहुंचा जाए।”
बागदा से लेकर उत्तर बंगाल के चाय बागानों और नदिया जिले तक कैंप लगाए जा रहे हैं। कार्यकर्ताओं का दावा है कि सीएए की धारा 10-डी के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आए किसी भी गैर-मुस्लिम शरणार्थी को दस्तावेजों के अभाव में निष्कासित नहीं किया जाएगा।
गैघाटा से एक बीजेपी नेता ने कहा, “लोग डर के कारण आवेदन करने से हिचकते हैं। हम कह रहे हैं— पहला कदम उठाइए, बाकी रास्ता हम तय करेंगे।”
मतुआ महासंघ के छात्र-युवा सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने घोषणा की कि आवेदन प्रक्रिया, शपथ पत्र और धार्मिक पहचान सत्यापन में मदद के लिए स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार बागदा और गैघाटा जैसे इलाकों में मतुआ मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा रही है।
तृणमूल बोली— सीएए सिर्फ राजनीतिक स्टंट
टीएमसी सांसद ममता बाला ठाकुर ने कहा, “अगर सीएए इतना सशक्त कानून है तो महाराष्ट्र में मतुआ हिंदुओं को क्यों बांग्लादेशी कहा गया? मंत्री के हस्ताक्षर से जारी पहचान पत्र भी उन्हें नहीं बचा सका। बीजेपी का दोहरा रवैया उजागर हो गया है।”
राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती का कहना है कि, “बीजेपी की रणनीति में संभावना और जोखिम दोनों हैं। अगर ‘बिना दस्तावेज’ वाला अभियान विफल होता है और बड़ी संख्या में आवेदन खारिज होते हैं, तो यह तृणमूल के इस दावे को मजबूत कर देगा कि सीएए महज चुनावी स्टंट था। लेकिन अगर कुछ भी सफल आवेदन सामने आए, तो यह साबित करने के लिए काफी होगा कि सीएए वास्तव में एक सुरक्षा कवच है।”