नई दिल्ली, 31 अगस्त । देश में जैव अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए शनिवार को केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बायो ई-3 (अर्थव्यवस्था, रोजगार और पर्यावरण के लिए जैव प्रौद्योगिकी) नीति को जारी किया। नेशनल मीडिया सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में बायो मैन्यूफैक्चरिंग के पहल पर एक वेबसाइट भी जारी की गयी। इस मौके पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश गोखले, नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके सारस्वत सहित कई अधिकारी मौजूद थे।

इस अवसर पर केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि बायो ई-3 नीति को जारी करना दूरगामी प्रभाव वाला ऐतिहासिक कदम है। जैव अर्थव्यवस्था के नेतृत्व वाली क्रांति में यह नीति महत्वपूर्ण साबित होगी। विशेषकर पेट्रोलियम, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में इसकी अहम भूमिका रहेगी। उन्होंने कहा कि यह नीति आत्मनिर्भर भारत के मार्ग को प्रशस्त करेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार में जैव अर्थव्यवस्था के क्षेत्र काफी प्रगति हुई है। साल 2014 में जैव अर्थव्यवस्था 10 बिलियन यूएस डॉलर की थी जो आज कई गुना बढ़कर 137 बिलियन डॉलर हो गई है। 2030 तक यह 300 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी। उन्होंने पेट्रोलियम क्षेत्र पर इसके लाभ को बताते हुए कहा कि मौजूदा समय में हमारी ईंधन खपत का 86 प्रतिशत हिस्सा पेट्रोल से उत्सर्जित होता है। पूरा पेट्रोल दूसरे देशों से आता है। लेकिन हम अपनी निर्भरता जैव तकीनीकी की मदद से कम कर सकते हैं। हम 25 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा, 25 प्रतिशत बायोमास और बाकी कार्बन डाइऑक्साइड को रिसाइकिल कर पेट्रोलियम पर अपनी निर्भरता खत्म कर सकते हैं। आने वाले दिनों में ऐसा होगा कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था विनिर्माण क्षेत्रों पर निर्भर रहना बंद कर देगी।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश गोखले ने कहा कि इस नीति का उद्देश्य स्वच्छ, हरित, समृद्ध और आत्मनिर्भर भारत के लिए उच्च प्रदर्शन वाले जैव विनिर्माण को बढ़ावा देना है। यह नीति पूरी दुनिया के भविष्य के आर्थिक विकास के शुरुआती मार्गदर्शकों में से एक के रूप में भारत के लिए वैश्विक परिदृश्य में अग्रणी भूमिका सुनिश्चित करेगी। उन्होंने कहा कि भारत को ‘हरित विकास’ के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ाने की राष्ट्रीय प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए, एकीकृत बायो ई3 (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) नीति जलवायु परिवर्तन, घटते गैर-नवीकरणीय संसाधनों और असंवहनीय अपशिष्ट उत्पादन की चुनौतीपूर्ण पृष्ठभूमि में, सतत विकास की दिशा में एक सकारात्मक और निर्णायक कदम है। इस नीति का एक प्रमुख उद्देश्य रसायन आधारित उद्योगों को अधिक स्थायी जैव-आधारित औद्योगिक मॉडल में परिवर्तित करना है। यह चक्रीय जैव अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देगा, ताकि नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल किया जा सके। इसके लिए यह जैव-आधारित उत्पादों के उत्पादन के लिए माइक्रोबियल सेल कारखानों द्वारा बायोमास, लैंडफिल, ग्रीन हाउस गैसों जैसे अपशिष्ट के उपयोग को प्रोत्साहित करेगा।