सचिव ने अदालत से कहा – भविष्य में नहीं होगा ऐसा

कोलकाता, 12 मार्च । पश्चिम बंगाल में ओबीसी प्रमाणपत्रों को लेकर जारी विवाद के बीच राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत को कलकत्ता हाई कोर्ट में मुश्किल सवालों का सामना करना पड़ा। अदालत ने पूछा कि जब इस मामले में स्पष्ट रोक लगी हुई थी, तो फिर सरकारी भर्तियों में ओबीसी प्रमाणपत्र का उपयोग कैसे हुआ? अदालत के कड़े रुख के बाद मुख्य सचिव ने गलती स्वीकार की और भरोसा दिलाया कि भविष्य में ऐसा दोबारा नहीं होगा।

कोलकाता हाई कोर्ट ने पहले ही आदेश दिया था कि 2010 के बाद जारी किए गए ओबीसी प्रमाणपत्र अमान्य होंगे और इन्हें सरकारी नौकरियों में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। लेकिन इसके बावजूद राज्य सरकार पर आरोप लगा कि वह इन प्रमाणपत्रों के आधार पर नियुक्ति प्रक्रिया चला रही है। इस मामले में अदालत की अवमानना का केस दायर हुआ, जिसके बाद मंगलवार को मुख्य सचिव मनोज पंत को हाई कोर्ट में पेश होना पड़ा।

न्यायमूर्ति तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने मुख्य सचिव से कड़े सवाल किए। उन्होंने पूछा कि हमने अपना आदेश स्पष्ट रूप से दिया था, फिर भी इसे नजरअंदाज कर भर्तियां कैसे जारी रहीं? क्या राज्य सरकार या मुख्य सचिव के पास इस पर कोई नियंत्रण नहीं है?

मुख्य सचिव ने अदालत के सामने सफाई देते हुए कहा कि सितंबर में और हाल ही में मार्च में हमने सभी विभागों को हाई कोर्ट के आदेश की जानकारी दी थी। हमारे लिए इसे न मानने का कोई कारण नहीं है। यह एक गलती थी, जिसे मैं स्वीकार करता हूं।

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल को-ऑपरेटिव सोसाइटी की भर्तियों को लेकर भी सवाल उठे। आरोप है कि सरकार ने ओबीसी प्रमाणपत्रों के संबंध में अदालत के निर्देशों की अनदेखी कर भर्ती प्रक्रिया के लिए विज्ञापन जारी कर दिया और चयन सूची भी तैयार कर ली।

मुख्य सचिव ने अदालत को भरोसा दिलाया कि हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार कोई भी अंतिम निर्णय नहीं लिया जाएगा। जहां भी भर्ती प्रक्रिया चल रही थी, उसे रोक दिया गया है। सरकार की सभी भर्तियों पर रोक लगा दी गई है और जब तक यह मामला अदालत में लंबित है, तब तक ओबीसी प्रमाणपत्रों से कोई नियुक्ति नहीं होगी। अगर कहीं कोई गलती हुई है, तो हम उसे सुधार लेंगे।

न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने सुनवाई के दौरान कहा कि 2010 से पहले जिन लोगों ने ओबीसी प्रमाणपत्र प्राप्त किया था, उनके लिए किसी तरह की रोक नहीं है। फिर सरकार इसे हाई कोर्ट के आदेश की वजह से रुकी हुई नियुक्ति बता रही है, यह सही नहीं है।

उन्होंने मुख्य सचिव से कहा कि आप सबसे बड़े अधिकारी हैं, फिर भी आपके ही अधीनस्थ आपकी बात नहीं मान रहे। यह हमारे लिए चिंता की बात है। हमें आपको अदालत में बुलाना पड़ा, यह अपने आप में निराशाजनक है। अगर आपकी बात नहीं मानी जाएगी, तो फिर किसकी मानी जाएगी?

मुख्य सचिव ने अदालत को आश्वस्त किया कि वह इस मामले में पूरी तरह सतर्क रहेंगे।

अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि जब सरकारी वकील ने पहले ही अदालत में हलफनामा देकर आश्वासन दिया था कि सभी विभाग कोर्ट के आदेशों का पालन करेंगे, तो फिर सरकार खुद ही अपने वकील के बयान के खिलाफ क्यों काम कर रही है?

न्यायाधीशों ने मुख्य सचिव से पूछा कि अगर कोई आपके आदेशों को नहीं मानता, तो क्या आप उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करेंगे? कम से कम उन अधिकारियों को बुलाकर पूछताछ तो करें कि उन्होंने अदालत के निर्देशों का पालन क्यों नहीं किया?

12 लाख ओबीसी प्रमाणपत्र किए जा चुके हैं रद्द

गौरतलब है कि 22 मई 2024 को हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में जारी 12 लाख ओबीसी प्रमाणपत्रों को अमान्य घोषित कर दिया था। अदालत ने साफ कहा था कि 2010 के बाद जारी सभी प्रमाणपत्र रद्द माने जाएंगे और इनका इस्तेमाल सरकारी नौकरियों या किसी अन्य सरकारी योजना में नहीं किया जा सकता।

राज्य सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन वहां से कोई रोक नहीं मिली। फिलहाल, यह मामला सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ में लंबित है।