कोलकाता, 08 अप्रैल। पूरे देश के साथ पश्चिम बंगाल में चुनावी दंगल दिलचस्प है। इस बार लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लागू कर दिया है जो पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रहने वाले बांग्लादेश के शरणार्थी हिंदू समुदाय “मतुआ” लोगों के लिए सबसे बड़ा तोहफा है। इस समुदाय का गढ़ है बनगांव लोकसभा सीट। यहां से 2019 में भी भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवार शांतनु ठाकुर को जीत मिली थी और इस बार भी बहु प्रतीक्षित नागरिकता अधिनियम का कानून लागू होने के बाद उम्मीद भाजपा के ही पक्ष में है।

भाजपा ने शांतनु ठाकुर को एक बार फिर उम्मीदवार बनाया है। तृणमूल कांग्रेस भी इस बात को भली-भांति समझ चुकी है इसलिए 2019 की उम्मीदवार ममता बाला ठाकुर को चुनावी मैदान में नहीं उतारा है। उनकी जगह विश्वजीत दास को टिकट दिया है। उनका मतुआ समुदाय में बहुत अधिक पैठ नहीं है इसलिए माना जा रहा है कि भाजपा के लिए लड़ाई और आसान हो गई है। कांग्रेस ने इस सीट पर प्रदीप विश्वास को उम्मीदवार बनाया है। वाम दलों की ओर से फिलहाल यहां उम्मीदवार नहीं उतारे जाने की उम्मीद है क्योंकि कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन वाम मोर्चा कर सकता है।

क्या है भौगोलिक स्थिति

पश्चिम बंगाल की बनगांव लोकसभा सीट 2009 में अस्तित्व में आई थी। इससे पहले यह हिस्सा बारासात संसदीय क्षेत्र के तहत आता था, लेकिन परिसीमन 2009 की रिपोर्ट में बनगांव को अलग से लोकसभा क्षेत्र घोषित किया गया। शुरुआत में इस सीट पर ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का कब्जा था। बनगांव उत्तर 24 परगना जिले का एक कस्बा है। इस संसदीय क्षेत्र का कुछ हिस्सा नदिया जिले में भी आता है।

चूंकि बनगांव संसदीय सीट 2009 में अस्तित्व में आई थी। इसलिए अभी तक यहां तीन ही लोकसभा चुनाव देखने को मिले हैं। इस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत सात विधानसभा सीटें हैं। इनमें कल्याणी, हरिनघाटा, बाग्दा, बनगांव उत्तर, बनगांव दक्षिण, गाइघाटा और स्वरूपनगर शामिल हैं। ये सभी विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं। बनगांव लोकसभा सीट के पहले सांसद तृणमूल कांग्रेस के गोविंद चंद्र नास्कर बने थे।

दरअसल, उत्तर 24 परगना जिला बांग्लादेश से सटा हुआ पश्चिम बंगाल का जिला है, जो सियासी रूप से काफी महत्वपूर्ण है। यह इलाका मतुआ समुदाय का गढ़ माना जाता है। यह समुदाय 1947 में देश विभाजन के बाद शरणार्थी के तौर पर यहां आया था। बंगाल में इनकी आबादी लगभग तीस लाख है और उत्तर व दक्षिण 24-परगना जिलों की कम से कम सात सीटों पर ये निर्णायक स्थिति में हैं।

क्या है मतदाताओं का आंकड़ा

इस संसदीय क्षेत्र के 75.72 फीसदी लोग गांवों जबकि 24.28 फीसदी लोग शहरों में रहते हैं। बनगांव संसदीय क्षेत्र की कुल आबादी में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी क्रमशः 42.56 और 2.8 फीसदी है। 2017 की मतदाता सूची के अनुसार यहां कुल 16 लाख 67 हजार 446 मतदाता हैं, जो 1864 मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। 2014 के संसदीय चुनावों में 83.36 फीसदी मतदान हुआ था जबकि 2009 में यह आंकड़ा 86.47 फीसदी था।

2014 के लोकसभा चुनावों में चुने गए सांसद कपिल कृष्ण ठाकुर के निधन के बाद 2015 में इस सीट पर उपचुनाव हुए जिसमें तृणमूल कांग्रेस की ही उम्मीदवार ममता ठाकुर जीतने में कामयाब रहीं थी।

क्या है 2019 का जनादेश?

2019 लोकसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा प्रत्याशी शांतनु ठाकुर ने तृणमूल कांग्रेस की ममता बाला ठाकुर को मात देते हुए छह लाख 87 हजार 622 वोट हासिल किए। वहीं, तृणमूल कांग्रेस की ममता ठाकुर को पांच लाख 76 हजार 028 वोट मिले थे। जबकि माकपा के अलकेश दास 90 हजार 122 वोटों के साथ तीसरे नंबर रहे।