आईसीसी  वॉटर एंड वेस्ट वॉटर समिट में डॉ मेहता का उद्बोधन

उदयपुर, 21 फरवरी। आयड़ नदी  बेसिन समग्र जल संसाधन  इंडो डेनमार्क योजना आप्रकृति प्रेम के भारतीय मूल्यों और नदी  बेसिन से संबंधित सामाजिक , संस्कृतिक, नैतिक व वैज्ञानिक  जुड़ावों को पुनर्स्थापित कर रही है। डेनमार्क की  अत्याधुनिक तकनीक, प्राकृतिक उपचार और सुधार विधियों  के इसमें जुड़ जाने से  यह कार्य   पूरे विश्‍व के लिए अनुकरणीय बन रहा है।

यह विचार बुधवार को नई दिल्ली के इंडिया हेबिटेट सेंटर में इंडियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित ” आई सी सी वॉटर एंड वेस्ट वॉटर समिट- टुवर्ड्स इको फ्रेंडली, वाटर सिक्योर इंडिया बाई 2047″ विषयक कॉन्फ्रेंस में विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य  तथा  डानिडा शोध योजना के मुख्य शोधकर्ता डॉ अनिल मेहता ने व्यक्त किये।

कॉन्फ्रेंस के मुख्य अतिथि जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह  शेखावत व विशिष्ठ अतिथि नमामि गंगे मिशन के निदेशक  राजीव कुमार थे।

डॉ मेहता ने कहा कि  भारतीय संस्कृति , जीवनशैली व परम्पराओं में जल संसाधनों का प्रबंधन ,संरक्षण और विकास समाज  केंद्रित रहा है। जल को पवित्र व पूजनीय माना जाता है और  नम्रता से इसका  सम्मान किया जाता है। भारत मे किसी भी धार्मिक कार्यक्रम अथवा सामाजिक  अनुष्ठान के प्रारंभ में  नदी बेसिन का संदर्भ दिया जाता  है।अनुष्ठान करने वाले व्यक्ति  को  नदी के बेसिन द्वारा पहचाना जाता है, जो एक प्रकार से उसकी  आईडी का काम करता है।  पूजा में कहा जाता है कि व्यक्ति  कौनसे  नदी क्षेत्र  से है। इन्ही भारतीय मूल्यों  व अपनी पारम्परिक वैज्ञानिक समझ के साथ नागरिक जिनमे महिलाएं, विद्यार्थी, शिक्षक, उद्यमी, वैज्ञानिक, किसान सभी सम्मिलित है, आयड़ नदी बेसिन के संरक्षण में महत्ती भूमिका निभाने को तत्पर हुए हैं। नागरिक बरसात, भूजल स्तर में हो रहे परिवर्तनों, जल गुणवत्ता का स्वयं आंकलन कर रहे हैं।

डेनमार्क दूतावास की वरिष्ठ अधिकारी डॉ अनिथा  के शर्मा की अगुवाई में आयोजित हुए विशिष्ट सत्र में कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के प्रो कार्टसन ने आयड़ नदी बेसिन जल संसाधन प्रबंधन मूल्यांकन से जुड़े कई आंकड़ों व हाइड्रोलॉजिकल मॉडल को प्रदर्शित किया।