कोलकाता, 12 नवंबर। पश्चिम बंगाल की छह विधानसभा सीटों पर बुधवार उपचुनाव होने वाले हैं। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए यह एक अहम परीक्षा है। यह उपचुनाव राज्य में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के बाद उभरते विरोध प्रदर्शनों के बीच हो रहे हैं। इस घटना ने जूनियर डॉक्टरों के बीच आक्रोश फैलाया है, जिन्होंने अपने दिवंगत साथी के लिए न्याय और प्रणालीगत सुधारों की मांग को लेकर लगातार आंदोलन किया है।
टीएमसी और भारतीय जनता पार्टी दोनों ने छह सीटों – नैहाटी, हरोआ, मेदिनीपुर, तालडांगर, सिताई (एससी), और मदारीहाट (एसटी) पर उम्मीदवार उतारे हैं। इन में से पांच सीटें टीएमसी के मजबूत क्षेत्रों में हैं, जबकि मदारीहाट भाजपा का गढ़ माना जाता है। इस बार सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे विपक्षी मतों का विभाजन होगा। वाम मोर्चा ने छह में से पांच सीटों पर और कांग्रेस ने सभी छह सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।
आरजी कर घटना के कारण राज्य में टीएमसी सरकार के प्रति असंतोष बढ़ने के जो दावे विपक्ष की ओर से किये जा रहे हैं वह किस हद तक सही हैं इसके संकेत उपचुनाव के नतीजों से मिल सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आरजी कर की घटना ने शहरी क्षेत्रों में सत्ता-विरोधी भावना को बढ़ावा दिया है।
टीएमसी नेतृत्व का दावा है कि यह आंदोलन मुख्यतः शहरी इलाकों तक ही सीमित है, उन्होंने भरोसा जताया कि वे अपने गढ़ों में जीत दर्ज करेंगे। तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हमारे द्वारा किए गए विकास कार्यों के आधार पर हमें सभी छह सीटों पर जीत का विश्वास है। बंगाल की जनता भाजपा की विभाजनकारी राजनीति को नकार देगी।”
दूसरी ओर, भाजपा नेताओं को भी उपचुनाव में अपने पक्ष में माहौल बनने की उम्मीद है। भाजपा नेता राहुल सिन्हा ने कहा, “हम मदारीहाट के साथ बाकी पांच सीटें भी जीतने का विश्वास रखते हैं।” भाजपा का दावा है कि आरजी कर घटना ने राज्य के स्वास्थ्य तंत्र की खामियों को उजागर किया है और जनता टीएमसी के शासन से “उकता गई” है।
वाम मोर्चा ने भी इस बार कांग्रेस से अलग होकर चुनाव मैदान में उतरने का निर्णय लिया है। वामपंथी नेताओं का मानना है कि यह उपचुनाव उनके लिए राज्य की जनता के बीच अपनी अपील का परीक्षण करने का एक अवसर है।
राजनीतिक विश्लेषक बिश्वनाथ चक्रवर्ती का कहना है, “उपचुनाव यह साबित करेंगे कि क्या टीएमसी को लोकसभा चुनावों जैसा व्यापक समर्थन अभी भी प्राप्त है। सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि आरजी कर मुद्दा मतदाताओं के निर्णय पर कैसा प्रभाव डालेगा।”