कोलकाता, 10 अगस्त। आजादी के संघर्ष की अनगिनत कहानियों में से एक कहानी है आशुतोष कुडाला की। इन्होंने मात्र 18 वर्ष की आयु में साहस और वीरता का वो उदाहरण पेश किया, जिसे सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उन्होंने अपने सीने पर गोली खाने के बावजूद अंग्रेजों का झंडा उतार कर भारतीय तिरंगा फहराया था।

आशुतोष का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनके हौसले साधारण नहीं थे। वे शुरू से ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ थे। 1922 में, जब वे केवल 18 वर्ष के थे, तब उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का मौका मिला।

आशुतोष कुड़ला का जन्म 1924 में हुआ था। उनके पिता एक साधारण किसान थे, लेकिन उन्होंने अपने बेटे को देशभक्ति के संस्कार दिए थे। बचपन से ही आशुतोष का झुकाव स्वतंत्रता संग्राम की ओर था। 1942 में, जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया, तो आशुतोष ने भी इसमें भाग लेने का फैसला किया।

नौ अगस्त 1942 को, जब पूरा देश गांधी जी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा हो गया था, तब आशुतोष ने भी अपने साथियों के साथ ब्रिटिश झंडे को उतारने का निश्चय किया। जब वह झंडा उतार रहे थे, तभी ब्रिटिश अधिकारियों ने उन पर गोली चला दी। लेकिन उन्होंने बिना किसी डर के अपने कर्तव्य को पूरा किया और झंडा उतारकर ही दम लिया।

उनके बलिदान ने पूरे क्षेत्र में देशभक्ति की लहर फैला दी। उनके इस कृत्य ने न केवल उनके गांव बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया। आशुतोष कुड़ला का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उनका जीवन और बलिदान आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।

आशुतोष ने अपने संकल्प और साहस से ब्रिटिश हुकूमत को यह संदेश दिया कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा किसी भी स्थिति में झुकने वाले नहीं हैं।

आशुतोष कुडाला का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर है। अपने प्राणों की आहुति देकर वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए।