कोलकाता, 03 फरवरी । एशिया के भौगोलिक परिदृश्य में अरुणाचल प्रदेश, तिब्बत और चीन के संबंधों का विशेष महत्व है। यह क्षेत्र अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और रणनीतिक स्थिति के कारण भारत-चीन संबंधों में लंबे समय से चर्चा का केंद्र रहा है। अरुणाचल प्रदेश, जो तिब्बत की सीमा से लगा है, मिश्मी जनजातियों का घर है। इस क्षेत्र की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जटिलताओं को समझना, क्षेत्रीय राजनीति और सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने की गहराई को उजागर करता है।
ऐतिहासिक संबंध
मिश्मी जनजातियों और तिब्बत के बीच ऐतिहासिक संबंध सदियों पुराने हैं। अरुणाचल प्रदेश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में निवास करने वाली मिश्मी जनजातियां तिब्बत के साथ व्यापार, संस्कृति और धर्म के माध्यम से गहरे संबंध साझा करती थीं। आधुनिक सीमाओं के निर्धारण से पहले, यह क्षेत्र एक स्वतंत्र भौगोलिक इकाई के रूप में कार्य करता था, जिसमें व्यापार मार्गों के माध्यम से विचारों और वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था।
बौद्ध धर्म, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी, तिब्बत के माध्यम से मिश्मी पहाड़ियों तक पहुंचा। मिश्मी जनजातियां, जो प्राचीन काल से प्रकृति-पूजा की परंपराओं में विश्वास करती थीं, तिब्बती बौद्ध धर्म से भी प्रभावित हुईं। ब्रिटिश शासन के दौरान, 1914 में मैकमोहन रेखा के निर्माण ने इस क्षेत्र को विभाजित किया और भारत-चीन के बीच क्षेत्रीय विवादों को जन्म दिया। 1950 में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा करने के बाद इस क्षेत्र का भू-राजनीतिक महत्व और अधिक बढ़ गया।
चुनौतियां और विवाद
1. क्षेत्रीय विवाद:भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश को लेकर विवाद 1962 के युद्ध से लेकर अब तक बना हुआ है। चीन अरुणाचल प्रदेश को “दक्षिण तिब्बत” का हिस्सा मानता है, जबकि भारत इसे अपना अभिन्न हिस्सा कहता है।
2. सामाजिक-आर्थिक समस्याएं:मिश्मी जनजातियों को उनके सुदूर इलाकों के कारण बुनियादी सेवाओं और सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ता है। बुनियादी ढांचे की कमी और वैश्वीकरण से परंपरागत संस्कृति पर भी असर पड़ा है।
3. पर्यावरणीय चुनौतियां:भूस्खलन और जलवायु परिवर्तन के कारण मिश्मी जनजातियों की कृषि और जंगलों पर निर्भरता खतरे में है। हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी और सरकार की आधुनिक विकास परियोजनाएं जनजातीय जीवनशैली से मेल नहीं खातीं।
आधुनिक परिवेश में बदलाव
हाल के वर्षों में भारत सरकार ने अरुणाचल प्रदेश में सीमा क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर जोर दिया है। सड़क, संचार और परिवहन व्यवस्था में सुधार के माध्यम से व्यापार और संसाधनों तक पहुंच बढ़ाई गई है।
पर्यावरण संरक्षण के प्रति वैश्विक जागरूकता बढ़ने से मिश्मी जनजातियों को अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखते हुए सतत कृषि और पारिस्थितिकी पर्यटन में भागीदारी करने का अवसर मिला है। इसके साथ ही, डिजिटल प्लेटफॉर्म और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संवाद के माध्यम से मिश्मी समुदाय अपनी पहचान और चिंताओं को व्यापक स्तर पर प्रस्तुत कर रहे हैं।
तिब्बत, मिश्मी जनजातियों और चीन के बीच संबंध न केवल ऐतिहासिक हैं, बल्कि आधुनिक राजनीति, संस्कृति और पर्यावरण से भी गहराई से जुड़े हैं। इस क्षेत्र की जटिलताएं यह संकेत देती हैं कि यहां शांति और सतत विकास के लिए स्थानीय जनजातियों की सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण और आधुनिक विकास के बीच संतुलन आवश्यक है।