इंजनों की आपूर्ति एक साल बाद शुरू होकर आठ साल की अवधि में पूरी होगी- अपग्रेड होने के बाद सुखोई रूसी जेट नहीं, बल्कि 78 फीसदी स्वदेशी हो जायेगा

नई दिल्ली, 09 सितम्बर । रक्षा क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’ के लिए सोमवार को रक्षा मंत्रालय ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ 26 हजार करोड़ रुपये के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत भारतीय वायु सेना के लड़ाकू सुखोई-30 एमकेआई विमानों के लिए 240 एयरो इंजन (एएल-31 एमपी) की खरीद एचएएल से की जाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने 02 सितम्बर को इस खरीद सौदे को मंजूरी दी थी।

भारतीय वायु सेना के पास सबसे शक्तिशाली और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लड़ाकू बेड़े में रूस में निर्मित सुखोई-30 एमकेआई भी है। सुखोई विमानों की मारक क्षमता बढ़ाने के लिए ऐसा राडार, नये इंजन, आईआरएसटी सेंसर, अगली पीढ़ी के आरडब्ल्यूआर, एडवांस जैमर, वैमानिकी, नए ईडब्ल्यू सूट, डीएफसीसी, भारतीय मिसाइलें और बम लगाए जाने हैं। एचएएल में अपग्रेड होने के बाद सुखोई-30 रूसी जेट नहीं रहेगा, बल्कि 78 फीसदी स्वदेशीकरण होने के बाद भारतीय जेट में बदल जायेगा। अपग्रेडशन पूरा होने के बाद भारतीय वायु सेना के लड़ाकू बेड़े को बड़ी ताकत मिलेगी और विदेशी मूल के उपकरण निर्माताओं (ओईएम) पर निर्भरता भी काफी सीमा तक कम हो जाएगी।

इसके अलावा सुखोई के इंजनों को भी बदला जाना है, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने 02 सितम्बर को मंजूरी दी। भारतीय वायु सेना के इन विमानों के लिए 240 एयरो-इंजन (एएल-31 एमपी) की डिलीवरी एक साल बाद शुरू होकर आठ साल की अवधि में पूरी होगी। इन इंजनों में 54 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री होगी। एचएएल में बनाए जाने वाले इन एयरो इंजनों की आपूर्ति से वायु सेना के हवाई लड़ाकू बेड़े की जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा, ताकि वे अपने निर्बाध संचालन को जारी रखकर देश की युद्ध और रक्षा तैयारियों को मजबूत कर सकें।

रक्षा मंत्रालय ने 26 हजार करोड़ रुपये से अधिक की लागत से सुखोई-30 एमकेआई विमान के लिए 240 एएच-31 एमपी एयरो इंजन खरीदने के लिए आज हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। नई दिल्ली में रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने और वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी की उपस्थिति में रक्षा मंत्रालय और एचएएल के वरिष्ठ अधिकारियों ने अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। इन हवाई इंजनों का निर्माण एचएएल के कोरापुट डिवीजन में किया जाएगा। समझौते के अनुसार एचएएल प्रति वर्ष 30 हवाई इंजन की आपूर्ति करेगा। सभी 240 इंजनों की आपूर्ति अगले आठ वर्षों की अवधि में पूरी हो जाएगी।