कोलकाता, 9 अप्रैल । तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधानसभा में पारित विधेयकों को मंजूरी न देने पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि राज्यपाल विधेयकों को इस तरह अनिश्चितकाल के लिए लंबित नहीं रख सकते। अब बंगाल में इसी फैसले को आधार बनाते हुए राज्यपाल डॉ. सी. वी. आनंद बोस पर दबाव बढ़ाया गया है। राज्य विधानसभा के स्पीकर विमान बनर्जी ने मंगलवार को राज्यपाल को याद दिलाया कि बंगाल के 23 विधेयक राजभवन में स्वीकृति की प्रतीक्षा में पड़े हुए हैं।

स्पीकर ने बताया कि वर्ष 2016 से 2025 तक विधानसभा द्वारा पारित कुल 23 विधेयक अभी तक राज्यपाल की स्वीकृति नहीं पा सके हैं। यदि विधेयकों में कोई त्रुटि हो, तो राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) से परामर्श कर सकते हैं। इस ओर शीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता है। विमान बनर्जी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्देशों को ध्यान में रखते हुए बंगाल के राज्यपाल को भी चाहिए कि वे अपने पास लंबित विधेयकों पर फैसला करें या उन्हें राज्य सरकार को लौटा दें। स्पीकर ने यह भी कहा कि यदि राज्यपाल संविधान के अनुसार कार्य करें तो सभी राज्यों को लाभ होगा।

स्पीकर ने एक सुझाव भी दिया कि यदि विधानसभा से पारित किसी विधेयक पर तीन से छह महीने के भीतर राज्यपाल स्वीकृति नहीं देते, तो उसे स्वतः ‘कानून’ मान लिया जाए।

राजभवन में जिन विधेयकों को मंजूरी नहीं मिली है, उनमें कई महत्वपूर्ण विधेयक शामिल हैं। इनमें मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) से संबंधित विधेयक, हावड़ा और बाली नगरपालिका के एकीकरण का विधेयक, मुख्यमंत्री को विभिन्न विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति (चांसलर) बनाने से संबंधित आठ विधेयक, और विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी गठन का विधेयक प्रमुख हैं। विमान बनर्जी ने कहा कि उन्हें यह स्पष्ट नहीं है कि राज्यपाल इन विधेयकों को मंजूरी क्यों नहीं दे रहे हैं।

इन तमाम आरोपों को लेकर राजभवन के एक अधिकारी ने बुधवार को बताया कि इन 23 विधेयकों में से सात विश्वविद्यालयों से जुड़े विधेयक अदालत में विचाराधीन हैं। दो विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजे गए हैं। एक विधेयक को कुछ शर्तों के साथ राष्ट्रपति की मंजूरी मिल चुकी है। शेष 12 विधेयकों के संबंध में राज्य सरकार से अतिरिक्त स्पष्टीकरण मांगा गया है।