कोलकाता, 23 सितंबर । पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर शुभंकर सरकार की नियुक्ति के बाद राज्य में पार्टी की तृणमूल कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ने की संभावना बढ़ गई हैं। इसके साथ ही राज्य में कांग्रेस और वाममोर्चा के बीच चुनावी गठबंधन के भविष्य को लेकर संशय बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे दो प्रमुख कारण सामने आए हैं।
पहला कारण शनिवार रात कांग्रेस द्वारा शुभंकर सरकार को पार्टी का नया राज्य अध्यक्ष घोषित किया जाना और दूसरा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी का हाल ही में असमय निधन हो जाना है, जिनके उत्तराधिकारी की घोषणा पार्टी नेतृत्व द्वारा अभी तक नहीं की गई है।
शुभंकर सरकार को राज्य और चुनावी राजनीति में संतुलन साधने वाले नेता के रूप में जाना जाता है। ऐसे में यह संभावना कम है कि वे पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (डब्ल्यूबीपीसीसी) की नीतिगत निर्णयों पर स्वतंत्रता की जोरदार वकालत करेंगे या माकपा के नेतृत्व वाले वामपंथी मोर्चा के साथ गठबंधन को बनाए रखने पर जोर देंगे। उनके पूर्ववर्ती और पांच बार के लोकसभा सांसद अधीर रंजन चौधरी इस मुद्दे पर मुखर थे। जबकि शुभंकर का रुख अब तक अपेक्षाकृत शांत और सैद्धांतिक रहा है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक मोइदुल इस्लाम का मानना है कि जिस तरह चौधरी ने 2016 के विधानसभा चुनावों से पहले अपनी पार्टी के उच्च नेतृत्व की इच्छाओं के विपरीत माकपा के साथ चुनावी समझौते की नींव रखी थी और 2024 के लोकसभा चुनावों तक इसे जारी रखा, वैसा रवैया शुभंकर सरकार से अपेक्षित नहीं है। अब तक उनकी भूमिका राज्य की राजनीति में एक सैद्धांतिक विचारक तक ही सीमित रही है।
दूसरी ओर, जहां चौधरी का तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ कड़ा रुख था, वहीं शुभंकर सरकार ने इस मुद्दे पर अब तक तटस्थता बनाए रखी है।
इस्लाम का मानना है कि उनके अध्यक्ष बनने से पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच बेहतर समझौते का रास्ता खुल सकता है।
येचुरी के निधन से कमजोर पड़ी है बंगाल माकपा
वहीं, येचुरी के निधन से माकपा की बंगाल इकाई का स्वतंत्र नेतृत्व कमजोर हो गया है। खासकर जब पार्टी के दक्षिणी राज्यों की इकाइयों से कांग्रेस के साथ गठबंधन का विरोध होता रहा है। माकपा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, येचुरी की मजबूती के बिना कांग्रेस के साथ बंगाल में यह चुनावी समझौता संभव नहीं था, क्योंकि येचुरी राज्य इकाई को पार्टी के अन्य राज्यों की असहमति के बावजूद समर्थन दे रहे थे।
मोइदुल इस्लाम का मानना है कि अगर माकपा के नए महासचिव के रूप में केरल से किसी नेता को चुना जाता है, तो पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामपंथी मोर्चा के गठबंधन की संभावनाएं और भी कम हो सकती हैं।