
कोलकाता, 20 नवम्बर । पश्चिम बंगाल निवासी शकुंतला लामिछाने, जो अपनी मां की हत्या के आरोप में 14 वर्ष से अधिक समय जेल में बिता चुकी हैं, अब कानूनी रूप से रिहाई की पात्र हैं, लेकिन उनका कोई पता-ठिकाना न होने के कारण रिहाई की प्रक्रिया अटक गयी है। इतने लंबे सालों तक जेल में रहने की वजह से वह अपना घर परिवार यहां तक कि पता भूल गई थी। हालांकि जेल प्रशासन की अपील पर हैम रेडियो ने अब उनके अपनों की खोज कर ली है और जल्द ही वह घर लौटेंगी। वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब के सचिव अंबरीश नाग विश्वास ने बुधवार को बताया कि जेल प्रशासन और पुलिस दोनों ही इस उलझन में थे कि शकुंतला को रिहा किये जाने पर उन्हें किसके हवाले किया जाये।
मामला वर्ष 2010 का है, जब खड़गपुर स्थानीय थाना पुलिस ने शकुंतला को अपनी मां टीका माया की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था। पारिवारिक कलह और ससुराल पक्ष के अत्याचारों से मानसिक रूप से टूट चुकी शकुंतला ने गुस्से में घर लौटी थी। उनकी मां ने जब इस बात की सलाह दी थी कि ससुराल में थोड़ी बहुत परेशानी होती है तो वह गुस्सा होकर अपने मां पर ही ईंट से हमला कर दी थी। मां उस समय सब्जी काट रही थीं, अचानक चोट लगने से उनका संतुलन बिगड़ा और वे घायल होकर गिर पड़ीं। पुलिस ने घटनास्थल से बरामद रक्तरंजित चाकू के आधार पर धारा 302 लगायी और अदालत ने उन्हें सजा सुना दी। जून 2010 में उन्हें मेदिनीपुर सुधारगृह भेजा गया, जहां से बाद में उन्हें दमदम केंद्रीय सुधारगृह स्थानांतरित कर दिया गया।
सजा पूरी होने के बावजूद शकुंतला की रिहाई इसलिए रुकी रही क्योंकि न तो उनके मायके और न ही ससुराल की कोई स्पष्ट जानकारी मिल पा रही थी। वह अपने घर परिवार के बारे में कुछ भी नहीं बता पा रही थी। खड़गपुर के सलुआ में उनके पति सुजीत लामिछाने का पुराना घर लंबे समय से बंद पड़ा है और उनका कोई पता उपलब्ध नहीं था। जेल कल्याण अधिकारी अनिरुद्ध घोष ने कई बार शकुंतला से बातचीत कर उनके परिवार का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन बदहवासी और भावनात्मक टूटन के कारण शकुंतला सिर्फ बेटे को देखने की गुहार लगाती रहीं।
जेल प्रशासन की मदद के लिये वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब सामने आया। अंबरीश नाग विश्वास के नेतृत्व में क्लब की टीम ने कलिम्पोंग, दार्जिलिंग, सलुआ और नेपाल तक परिवार की तलाश की। सुजीत की बहन अंजू घिसिंग का पता तो चला, लेकिन उन्होंने कोई जानकारी देने से इनकार कर दिया। उन्होंने रेडियो क्लब के सदस्यों के साथ बदसलूकी भी की और अंततः पुलिस से बचने के लिए नेपाल भाग गई। अंततः महीनों की खोज के बाद पता चला कि सुजीत लामिछाने बेंगलुरु हवाईअड्डे पर ‘सीआईएसएफ’ में तैनात हैं। उनका बेटा सिद्घार्थ दुबई के एक होटल में कार्यरत है और बेटी सैता की शादी हो चुकी है। उनके दामाद भी इंडियन आर्मी में हैं।
रेडियो क्लब ने सीआईएसएफ के अधिकारी मंजीत कुमार से संपर्क कर पूरी स्थिति से अवगत कराया। इसके बाद सुजीत ने क्लब से बात की, हालांकि पत्नी से वर्षों दूर रहने का कारण उन्होंने स्पष्ट नहीं किया। शकुंतला अब भी अपने पति के पास लौटना चाहती हैं और बच्चों से मिलने की इच्छा व्यक्त करती रहती हैं।
दमदम केंद्रीय सुधारगृह की वेलफेयर ऑफिसर पम्पा चक्रवर्ती पाल के अनुसार, शकुंतला की रिहाई तभी संभव है जब उनका परिवार औपचारिक रूप से आगे आये, क्योंकि कानून के अनुसार रिहाई के समय उन्हें परिजनों को सौंपना अनिवार्य है। सीआईएसएफ ने सुजीत को छुट्टी देने का निर्णय लिया है और उनके जल्द कोलकाता पहुंचने की उम्मीद है।
करीब 15 वर्ष बाद शकुंतला पहली बार जेल से बाहर कदम रख सकेंगी और बेटे सिद्धार्थ से मिल सकेंगी। मां की बात आते ही शकुंतला आज भी सिर झुका लेती हैं, मानो पुराने क्षणों का बोझ अब भी दिल पर बना हुआ हो।





