मजबूरी में अपनाए गए पंथ को त्यागने का करें साहस, एक दिवसीय प्रवास में बोले पूर्व राजनयिक

रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय का भी किया अवलोकन

झांसी, 07 सितंबर। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने शौर्य व बलिदान के माध्यम से हमें पराधीनता के प्रतिकार की जो सीख दी है, उसे प्रत्येक नर-नारी को अंगीकार करना चाहिए। अब वह पराधीनता सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं विदेशी वस्तुओं से जुड़ी है।

यह विचार अमेरिका स्थित भारतीय राजदूतावास वाशिंगटन डीसी में प्रथम सांस्कृतिक राजनयिक एवं भारतीय संस्कृति शिक्षक रहे डॉ. मोक्षराज ने झाँसी में शनिवार को एक दिवसीय प्रवास के दौरान झांसी-क़िला दर्शन के अवसर पर व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि देश की आज़ादी से पहले व उसके बाद लाखों लोगों को धन के लालच, मृत्यु व अस्मिता के भय से अपना धर्म बदलना पड़ा। अब ऐसे पंथों को ढोने का कोई औचित्य नहीं है। सांस्कृतिक हमलों से पीड़ित लोगों को महारानी लक्ष्मीबाई के साहस से प्रेरणा पाकर मजबूरी में अपनाए पंथों को त्यागना चाहिए। ऐसा करने पर वे न केवल अपने पूर्वजों की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा कर पाएँगे बल्कि देश के प्रति अपेक्षाकृत अधिक निष्ठा व विश्वसनीयता भी ग्रहण कर सकेंगे तथा जिसके कारण उनकी नई पीढ़ी का भविष्य और अधिक उज्ज्वल होगा तथा उनके लिए यह सांस्कृतिक आज़ादी युगों-युगों के लिए हितकारी हो सकती हैं।

डॉ. मोक्षराज ने कहा कि हमें अपने देश की आर्थिक समृद्धि व सामयिक शक्ति के लिए विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का भी संकल्प लेना चाहिए तथा राजनेताओें को अपने सिर पर बिठाने की अपेक्षा उन्हें ईमानदारी से राष्ट्र सेवा करने के लिए विवश करना चाहिए।

झांसी प्रवास के दौरान उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय का भी अनौपचारिक भ्रमण किया। विश्वविद्यालय में कृषि पर हो रहे अनुसंधानों एवं पर्यावरण के रक्षक लाखों पेड़-पौधों को देखकर उन्हें अत्यंत प्रसन्नता हुई, जिसके लिए डॉ. मोक्षराज ने विश्वविद्यालय प्रशासन व कार्मिकों की प्रशंसा की। उनके साथ भरतपुर के राष्ट्रवादी युवा रवि चौधरी एवं अलवर के कृषकरत्न मनीष कुमार भी थे।