गिरिडीह, 12 सितंबर। झारखंड के गावां थाना क्षेत्र के माल्डा गांव में शुक्रवार की सुबह दर्दनाक घटना घटी। गांव के 32 वर्षीय युवक भैरव तिवारी की जान उस वक्त चली गई, जब इलाज के नाम पर एक झोला छाप डॉक्टर ने उसे लगातार तीन इंजेक्शन लगा दिए। पल भर में उसकी सांसें थम गईं और परिवार का सहारा छिन गया।
भैरव तिवारी के शव को सड़क पर रखकर ग्रामीणों ने पांडेडीह मोड़ के पास पटना–पिहरा मुख्य मार्ग को जाम कर दिया। गुस्से से भरे लोग प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ नारे लगा रहे थे—“झोला छाप डॉक्टर बंद करो, स्वास्थ्य विभाग होश में आओ।” भीड़ में सबसे आगे वे महिलाएं थीं जिनकी आंखों में भय और आक्रोश दोनों साफ झलक रहा था।
भैरव तिवारी पीछे पत्नी और दो छोटे बच्चों को छोड़ गया। घटना के बाद घर में मातम पसरा है। पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है, जबकि मासूम बच्चे अपने पिता के शव के पास अचंभित होकर खड़े हैं। यह दृश्य ग्रामीणों के दिलों को झकझोर रहा है। परिजनों का कहना है कि अगर डॉक्टर पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो यह अन्य परिवारों के साथ भी हो सकता है।
ग्रामीणों का आरोप है कि सरकारी योजनाओं और अस्पतालों की कमी का फायदा उठाकर झोला छाप डॉक्टर गांव-गांव में सक्रिय हैं। न तो उनके पास डिग्री है और न ही मरीजों को बचाने का अनुभव। केवल लालच में वे दवाइयां और इंजेक्शन लगाते हैं, जिससे जान जोखिम में पड़ जाती है। सवाल यह है कि क्या स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन को इनकी जानकारी नहीं होती? या फिर मिलीभगत से आंख मूंद ली जाती है?
सूचना मिलते ही गावां इंस्पेक्टर रोहित कुमार पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। उन्होंने आक्रोशित भीड़ को शांत कराने का प्रयास किया। इस बीच, आरोपी झोला छाप डॉक्टर हरि दास अधिकारी क्लिनिक बंद कर फरार हो गया। पुलिस उसकी तलाश में जुटी हुई है।
गांववालों का कहना है कि मृतक के परिजनों को उचित मुआवजा मिले और झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो। साथ ही सरकार को गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना चाहिए, ताकि लोग मजबूरी में झोलाछापों के पास न जाएं।
यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि उस सच्चाई की परत खोलती है जिसमें गांवों की कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही सामने आती है। सवाल उठता है—आखिर और कितनी जिंदगियां यूं ही बलि चढ़ेंगी?
