
कोलकाता, 15 दिसंबर । बीसवीं सदी के महान शायर फ़िराक़ गोरखपुरी केवल शायर ही नहीं बल्कि स्वत्नत्रता सेनानी , लेखक,चिंतक एवं अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर भी थे। उन पर रेवती लाल शाह ने हिंदी में एक पुस्तक ‘फ़िराक़ और फ़िराक़ का चिंतन’ लिखी थी।उसका अंग्रेज़ी अनुवाद शैली शाह ने ‘फ़िराक़ एंड हिज थॉट’ के नाम से किया है।
शैली ने पुस्तक की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। शैली ने बताया कि वह किस तरह प्रेरित हुई। उसे ‘फ़िराक़’ साहब द्वारा अंधेरे पर की गई व्याख्या ने बहुत प्रभावित किया। इसका लोकार्पण गत शनिवार 13 दिसम्बर को भारतीय भाषा परिषद् के सभाकक्ष में प्रसिद्ध पत्रकार विश्वम्भर नेवर की अध्यक्षता में हुआ।
अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने अनुवाद को एक कठिन कार्य बताते हुए इस पुस्तक के सार्थक अनुवाद के लिए शैली की प्रशंसा की।उन्होंने कहा कि पहले साहित्यकार राजनीतिज्ञों पर अंकुश रखते थे।अब वैसा बहुत कम देखने को मिलता है।गंभीर साहित्य पर भी चर्चा कम होने लगी है।ऐसे माहौल में ‘फ़िराक़’ जैसे शायर पे लिखना और वह भी एक युवा द्वारा,यह शुभ संकेत है।शैली की मेहनत इसके अनुवाद में स्पष्ट दिखाई देती है।
मुख्य वक्ता के रूप में रेशमी पांडा मुखर्जी ने पुस्तक के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।उन्होंने कहा कि पुस्तक में पहले पाँच अध्याय हैं। इनमें ‘फ़िराक़’ की असाधारण प्रतिभा,उनके चिंतन,उनकी कविता,उनके भारत-प्रेम और बतौर शायर चर्चा की गई है। फिर ‘फ़िराक़’ के दर्शन पर रौशनी डालते हुए उनकी साठ से अधिक चुनिंदा रुबाइयों और शेरों पर बहुत प्रभावशाली व्याख्या है।अंत में ‘फ़िराक़’ साहब के संग कोलकाता में रेवती लाल शाह की शायराना बैठकों और इनमें ‘फ़िराक़’ की शायरी पर उनके सामने विवेचना पर उनके सचिव रमेश चंद्र द्विवेदी का अत्यंत रुचिकर लेख है।शैली ने हिंदी,अंग्रेजी और उर्दू -तीन भाषाओं को जोड़कर कर इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पढ़ने योग्य बना दिया है।
संयोजक प्रमोद शाह ने ‘फ़िराक़’ के चंद लाजवाब शेर,रुबाइयाँ,नज़्म और ग़ज़लों का बड़ा असरदार वाचन किया।श्रोता झूम उठे –
“यारो वाहम गुँथा हुआ काइनात का ज़र्रा ज़र्रा
एक फूल को जुम्बिश दोगे तो इक तारा काँप उठेगा”
” इन रागों का राज़ कोई पूछे हमसे
अख़्लाक़ खनकते हैं तालो-सम से
मिटटी तेरी ऐ हिन्द है नरमाई हुई
सीता-ओ-शकुंतला के अश्क़े-ग़म से”
“अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँ ही कभू लब खोलें हैं
पहले ‘फ़िराक़’ को देखा होता अब तो बहुत कम बोलें हैं
कार्यक्रम का सफल सञ्चालन किया साहित्य अनुरागी अजयेंद्रनाथ त्रिवेदी ने। पावस शाह ने स्वागत वक्तव्य रखा। विश्वम्भर नेवर,रेशमी पांडा मुखर्जी ,अजयेंद्रनाथ त्रिवेदी को पुष्पगुच्छ प्रदान किया क्रमशः श्रुति डोकानिया,अलका शाह और ध्वनि शाह ने और उनके स्मृति चिन्ह प्रदान किया क्रमशः रतन शाह,अरुणा खण्डेलिया और ऋचा टिबड़ेवाल ने। ‘फ़िराक़’ साहब के कुछ रोचक किस्से सुनाते हुए धन्यवाद दिया प्रमोद शाह ने।
महावीर प्रसाद मणकसिया,सुरेश चौधरी,रवि प्रताप सिंह,दिनेश वडेरा,राजेंद्र कानूनगो,बिमला पोद्दार,दिव्या प्रसाद,राजेंद्र खण्डेवाल,कमलेश मिश्र एवं अन्य श्रोताओं से सभाकक्ष खचाखच भरा हुआ था।








