आत्मसमर्पित रुपेश ने एक वीडियाे जारी कर दिया बयान
जगदलपुर, 26 अक्टूबर । नक्सली संगठन के केंद्रीय समिति के नक्सली नेता सोनू ने आत्मसमर्पण किया फिर नक्सलियाें के हार्डकोर कमांडर रुपेश ने हथियार डाले। लगातार बड़े नक्सलियों के आत्मसमर्पण से नक्सली गुटों में खलबली मची हुई है। सरकार अपनी सफलता पर खुश है, वहीं बचे-खुचे हथियार बंद नक्सली अपने साथियों के आत्मसमर्पण से दहशत और गुस्से में हैं।
नक्सली संगठन की सेंट्रल कमेटी ने इस कदम को “गद्दारी” करार देते हुए बयान जारी किया। इसके बाद रविवार काे सीपीआई (माओवादी) के आत्मसमर्पित केंद्रीय समिति सदस्य रूपेश उर्फ सतीश द्वारा जारी एक वीडियो बयान प्राप्त हुआ है। अपने इस बयान में रूपेश ने दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति के नॉर्थ सब-जाेनल ब्यूरो के माओवादी कैडरों के सामूहिक आत्मसमर्पण के निर्णय की प्रक्रिया और उसके पीछे के कारणों का विस्तार से उल्लेख किया है।
आत्मसमर्पित नक्सली लीडर रुपेश ने खुलासा किया कि कई नक्सली आज भी आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, लेकिन संगठन के भय और प्रतिशोध की आशंका से पीछे हट जाते हैं। शासन से हमारी अपील है कि जो साथी अब भी जंगल में हैं, उन्हें विश्वास दिलाया जाए कि सरकार उन्हें सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन देगी।
आत्मसमर्पित रूपेश उर्फ सतीश द्वारा जारी वीडियो बयान के संदेश से यह स्पष्ट होता है कि 210 साथियों के साथ हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौटने का निर्णय अधिकांश माओवादी कैडरों का एक सामूहिक और सोच-समझकर लिया गया फैसला था, जो शांति, प्रगति और सम्मानजनक जीवन में उनके विश्वास को दर्शाता है। केवल कुछ सीमित कैडर ही इस निर्णय से असहमत या उससे अलग हैं। यह भी प्रतीत होता है कि कुछ स्वार्थपूर्ण कारणों और व्यक्तिगत हितों के चलते पोलित ब्यूरो सदस्य देवजी, केंद्रीय समिति सदस्य संग्राम और हिडमा तथा वरिष्ठ माओवादी कैडर जैसे बरसे देवा और पप्पा राव आदि ने सशस्त्र संघर्ष समाप्त करने के इस सामूहिक निर्णय की जानकारी निचले स्तर के कैडरों तक नहीं पहुंचाई है।
आत्मसमर्पण करने वाला नक्सली कमांडर रुपेश न केवल दंतेवाड़ा-बीजापुर डिवीजन कमेटी का प्रमुख था, बल्कि कई वर्षों तक दक्षिण बस्तर के नक्सली नेटवर्क का रणनीतिकार भी रह चुका है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों में नक्सली आंदोलन की जड़ें कमजोर हुई हैं, क्योंकि युवाओं को अब यह समझ में आने लगा है, कि हथियार उठाने से न तो न्याय मिलेगा और न विकास। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली कमांडर बताते हैं कि हमने क्रांति के नाम पर कई निर्दोषों की जान ली, लेकिन अब हमें एहसास हुआ कि असली बदलाव बंदूक से नहीं, संवाद से आता है। आत्मसमर्पण कर चुके नक्सली कमांडर रुपेश ने इस बात को स्वीकार किया है।
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब किसी वरिष्ठ नक्सली द्वारा अपने संगठन की लाइन से हटने पर संगठन ने उसे गद्दार घोषित किया हो, बड़े नक्सली नेताओं के आत्मसमर्पण के इतिहास को पलटे तो मिलेगा कि, नक्सल आंदोलन के शुरुआती दिनों में कानू सान्याल ने हिंसा की राह छोड़ने की बात की थी, तब भी उन्हें क्रांति विरोधी ठहराया गया था। इसी तरह सीतारमैय्या सहित कई अन्य नक्सली नेताओं ने विचारधारा से अलग रास्ता अपनाया तो उन्हें भी गद्दार बताया गया।
बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुन्दरराज पट्टलिंगम ने उल्लेख किया कि सरकार की मंशा के अनुरूप, बस्तर की जनता का कल्याण और सुरक्षा बस्तर पुलिस तथा यहां तैनात सुरक्षा बलों की सर्वोच्च प्राथमिकता है। आज शेष माओवादी कैडरों के सामने केवल एक ही विकल्प शेष है, हिंसा और विनाश के मार्ग को त्यागकर शांति और विकास के मार्ग को अपनाना। जो लोग अब भी इस विवेकपूर्ण आह्वान की अवहेलना करेंगे, उन्हें इसके अनिवार्य परिणामों का सामना करना पड़ेगा।
